अब इमरजेंसी में पहुंचते ही बच्चों को देखेंगे विशेषज्ञ पीडियाट्रीशियन

लखनऊ। दुर्घटना के बाद अस्पताल पहुंचाने में होने वाली देरी, प्राथमिक उपचार न मिलने और असावधानी से घायलों की जान पर बन आती है। बच्चों के मामले में यह स्थिति और भी खतरनाक होती है। अब केजीएमयू की इमरजेंसी में पहुंचते ही बच्चों को सामान्य डॉक्टर के बजाय विशेषज्ञ पीडियाट्रीशियन देखेंगे। इससे पहले ही बच्चे इन विशेषज्ञों द्वारा प्रशिक्षित डॉक्टर या अन्य जिम्मेदार की निगरानी में आ चुके होंगे। ऐसा संभव होगा एडल्ट एंड पीडियाट्रिक ट्रॉमा इमरजेंसी सर्विसेज के प्रोजेक्ट के माध्यम से। संस्थान की कार्य परिषद ने इस प्र्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। संक्रमण की स्थिति और सामान्य होने के बाद इसकी शुरुआत होगी। केजीएमयू के पीडियाट्रिक ऑर्थोपेडिक्स विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. अजय सिंह ने बताया कि ट्रॉमा सेंटर में हर आयु वर्ग के मरीज आते हैं। इनमें बच्चे भी होते हैं। सामान्य व्यक्ति के मुकाबले बच्चों के किसी भी रोग का इलाज करने में ज्यादा सावधानी रखनी होती है। ट्रॉमा में डॉक्टर और रेजीडेंट्स का प्रशिक्षण इस हिसाब से नहीं होता है। इसलिए यह प्रोजेक्ट तैयार किया गया है। यह प्रोजेक्ट दो भाग में है। पहले भाग के अनुसार जैसे ही कोई बच्चा आएगा उसे पीडियाट्रीशियन की निगरानी में ही रखा जाएगा। दुर्घटना के पहले कुछ घंटे बेहद अहम होते हैं। ऐसा करने से काफी समय बचाया जा सकता है। इससे बच्चे को बेहतर इलाज मिल सकेगा। दूसरे भाग में केजीएमयू में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर तैनात डॉक्टर, स्टाफ के साथ ही पुलिसकर्मी, ट्रैफिक पुलिस कर्मी, एंबुलेंस कर्मी और सामान्यजन को प्रशिक्षित किया जाएगा। तीन से पांच दिन के इस प्रशिक्षण में डॉक्टरों को प्राथमिक इलाज और अन्य को अस्पताल पहुंचाने के दौरान बरती जाने वाली सावधानियों के बारे में बताया जाएगा। इसके लिए लेक्चर, डेमो तथा रिकॉर्डेड वीडियो का सहारा लिया जाएगा। ऐसा होने पर बच्चों की हालत खराब होने से बचाई जा सकेगी। ट्रॉमा सेंटर में आने वाले मरीजों में करीब 30 फीसदी बच्चे डॉ. अजय सिंह के अनुसार, ट्रॉमा में आने वाले कुल मरीजों में से 30 फीसदी बच्चे (शून्य से 16 वर्ष) आयु वर्ग के होते हैं। प्रोजेक्ट में बच्चों के साथ ही वयस्कों को भी शामिल किया जा रहा है। वयस्कों के लिए प्रशिक्षण को छोड़कर अन्य इलाज की व्यवस्था अभी भी व्यवहार में है। बड़ा बदलाव बच्चों के इलाज में ही होने वाला है। पीडियाट्रिक ऑर्थोपेडिक्स विभाग को कार्य परिषद की मंजूरी मिल चुकी है। इसे शासन को भेजा रहा है। कोरोना महामारी की वजह से इसमें कुछ देरी हुई है। अब हालात सामान्य हो रहे हैं। उम्मीद करते हैं कि जल्द ही यह व्यवस्था व्यवहार में आ जाएगी।

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