वाराणसी। नई शिक्षा नीति के अनुसार बीएड पाठ्यक्रम तैयार करने में दुविधा सामने आ रही है। एक तरफ विश्वविद्यालयों को न्यूनतम समान पाठ्यक्रम बनाने का निर्देश दिया गया है, दूसरी तरफ नेशनल काउंसिल फार टीचर्स एजुकेशन (एनसीटीई) नई शिक्षा नीति के अनुसार स्वयं बीएड पाठ्यक्रम तैयार करने की तैयारी में है। इसको लेकर शिक्षक भी असमंजस में हैं। प्रदेश स्तर पर बीएड का जो कामन सिलेबस विश्वविद्यालयों को भेजा गया है, उसके पाठ्यक्रम में कई विसंगतियां भी हैं। विद्यार्थियों को इस्लाम के पहले व बौद्ध काल के बाद की शिक्षा व्यवस्था भी पढ़ाया जाना चाहिए। जबकि कामन सिलेबस में मध्यकालीन शिक्षा व्यवस्था गायब है। वहीं भाषा विकास में एक भी भारतीय का नाम नहीं जोड़ा गया है। शिक्षकों ने भारतीय विद्वानों में पाणिनि, यास्क, याज्ञवल्क्य, पतंजलि जैसे विद्वानों का नाम जोड़ने का सुझाव दिया है। द्वितीय यूनिट में भारतीय अवधारणा, चतुर्थ यूनिट में भाषा, संस्कृति व समाज को भी जोड़ने का सुझाव है। शिक्षकों ने सवाल उठाए हैं कि जब राज्य सरकार द्वारा निर्धारित पाठ्यक्रम लागू हो जाएगा तो राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुसार जो पाठ्यक्रम तैयार होगा उसका क्या होगा। यदि नई शिक्षा नीति के अनुसार काम होना है तो सरकार को इतनी जल्दबाजी किस बात की है। प्रदेश स्तर पर बीएड का कामन सिलेबस तैयार करके सभी विश्वविद्यालयों को 88 पेज का ड्राफ्ट भेजा जा चुका है। इसमें विश्वविद्यालय को 30 फीसदी संशोधन करने का अधिकार दिया गया है। बीएड के कामन सिलेबस को लेकर महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ व संस्कृत विश्वविद्यालय के शिक्षकों ने सवाल उठाए हैं। उनका कहना है राष्ट्रीय शिक्षा नीति में जहां स्थानीय भाषा, हिंदी, संस्कृत को बढ़ावा देने की बात कही गई है। वहीं शासन की ओर से जारी 88 पेज का सिलेबस पूरी तरह से अंग्रेजी में है। जबकि सूबे में तीन चौथाई से अधिक शैक्षणिक संस्थान हिंदी माध्यम से संचालित हो रहे हैं। इसके साथ ही सत्यं शिवम सुंदरम का अनुवाद करने की बजाय उसे हिंदी में ही लिखा जाए।