राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि एक युवक एक विद्वान के पास गया और पूछा कि मनुष्य किसी भी खराब आदत को जितनी आसानी से अपना लेता है, उतनी ही आसानी से उसे छोड़ क्यों नहीं पाता। इसके लिए अत्यधिक आत्मबल और प्रयासों की जरूरत क्यों पड़ती है। विद्वान ने सामने रस्सी बना रहे, किसान की ओर इशारा करके कहा कि वहां देखो, क्या इस बिना बटी हुई रस्सी को तुम तोड़ सकते हो, युवक ने कहा कि बड़ी आसानी से एक ही झटके में टुट सकता है। विद्वान ने पूछा कि और बटी हुई रस्सी को। युवक ने कहा कि पूरी ताकत लगा कर भी नहीं तोड़ सकता। विद्वान ने कहा कि हमारी आदत भी रस्सी की तरह है, जिसे हम रोज आसानी से बट देते हैं, लेकिन अन्त में इसे तोड़ नहीं सकते। जीवन में रहे दोषों पर विजय प्राप्त कर लेना ही शौर्य है। बुरी आदतें पहले शूर्पणखा के समान सुन्दर लगती है। बाद में अपना असली रूप दिखाती है। संसार के सुखों की बहुत कामना अच्छी नहीं है। कामना पूर्ण हो जाय तो और कामना जागृत होती है न पूर्ण हो तो मन व्यग्र होता है मन के ऊपर सदा भक्ति का अंकुश रखो। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं नवनिर्माणाधीन गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना-श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर
जिला-अजमेर (राजस्थान)