राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि भाद्रमास, कृष्णपक्ष, अष्टमीतिथि, रोहिणीनक्षत्र, बुधवार, अर्धरात्रि के समय मथुरा कंस के कारागार में वसुदेव देवकी के सनमुख भगवान चतुर्भुज रूप में प्रकट हुए। दिव्य प्रकाश से पूरा कारागार जगमग हो गया। माता देवकी और वसुदेव जी को पूर्व जन्म का स्मरण हो आया, भगवान पुत्र बन करके आने का वरदान दिए थे। महारानी देवकी भगवान से कहती हैं, आप बालक बन जाइए।भगवान बालक बन गए। वसुदेव जी महाराज भगवान को लेकर गोकुल चले। भगवान ने कहा था, बाधाएं बड़ी-बड़ी आयेंगी, आप घबराना नहीं सब टलती चली जायेगी। श्री बसुदेव जी भगवान को गोकुल पहुंचा करके कन्या के रूप में जो महामाया भगवती का अवतरण हुआ था, उनको लेकर के वापस आये। कंस को पता लगा, कंस ने मारना चाहा, लेकिन भगवती उसके हाथ से छूट करके अष्टभुजा दुर्गा के रूप में प्रकट हुई और फिर कंस को फटकारा, तू मुझे क्या मारेगा, तुझे मारने वाला ब्रज में प्रगट हो गया।
मां भगवती विंध्याचल में विंध्यवासिनी माता के रूप में प्रतिष्ठित हुई। जिन्हें विष्णु महापुराण में भगवान की छोटी बहन कहा गया है। उधर गोकुल में नंद बाबा ने भगवान के प्राकट्य का उत्सव मनाया। आध्यात्मिक दृष्टि से हमारे आपके लिए बहुत बड़ी शिक्षा है। जन्म तो सबका ही अंधेरे में ही होता है, एक वृक्ष जब अंकुर फूटता है तो वह धरती के अंधेरे में ही अंकुर फूटता है। लेकिन जरूरी नहीं कि हम जीवन भी अंधेरे में ही जियें और मृत्यु भी अंधकार में ही हो। दूसरा भगवान कारागार में प्रकट हुए, जन्म तो सबका कारागार में ही होता है, लेकिन आवश्यक नहीं कि हम बंधन में ही जियें और मोह माया के बंधन में ही मृत्यु को प्राप्त हों। ऐसा भी हो सकता है कि हम सत्संग प्राप्त करके, प्रकाश और मुक्त अवस्था में जीवन को संपन्न कर सकें। लेकिन इसके लिए हमारे जीवन में सत्संग, विवेक और साधना की आवश्यकता है। छोटीकाशी बूंदी की पावन भूमि, श्री सुदामा सेवा संस्थान (वृद्धाश्रम) का पावन स्थल, पूज्य महाराज श्री-श्री घनश्याम दास जी महाराज के पावन सानिध्य में, चातुर्मास के पावन अवसर पर श्री विष्णु महापुराण कथा के षष्टम दिवस, श्री कृष्ण जन्म की कथा का गान किया गया, कल की कथा में नंदोत्सव मनाया जायेगा।