नई दिल्ली। कैंसर का इलाज करा रहे 85 फीसदी लोग अपनी सामान्य दवाओं के अलावा आयुर्वेदिक उपचार का भी सहारा ले रहे हैं। 39 फीसदी रोगी प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति अपना रहे हैं। रोगियों का मानना है कि इन उपचारों से उन्हें कोई दुष्प्रभाव नहीं हो रहा है। कैंसर के इलाज के लिए अस्पताल में आने से पहले और उसके बाद भी वह आयुर्वेदिक और प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति से खुद को स्वस्थ रख रहे हैं। दिल्ली के राजीव गांधी कैंसर संस्थान एवं रिसर्च सेंटर में भर्ती मरीजों पर हुए शोध में यह बात सामने आई है। अस्पताल में कैंसर का इलाज करा रहे 15 से 88 वर्ष की आयु के 303 रोगियों को शोध में शामिल किया गया। इसमें पता चला कि इन मरीजों में से एक तिहाई से अधिक (104) उपचार के लिए एक्यूपंचर और नैचुरोपैथी का सहारा ले रहे हैं। इनमें से 61 फीसदी ने अस्पताल आने से पहले इन उपचारों को अपनाया था और 39 प्रतिशत अभी भी अपना रहे हैं। इन दोनों तरह के लोगों में 85 प्रतिशत ने आयुर्वेद को वैकल्पिक चिकित्सा के रूप में चुना है। अस्पताल के ओन्कोलॉजी विभाग के निदेशक डॉ. विनीत तलवार ने बताया कि कैंसर का इलाज करा रहे यह मरीज एक्यूपंचर और नैचुरोपैथी जैसी चिकित्सा प्रणाली का उपयोग कर रहे हैं। मानक इलाज से पहले इन उपचारों का सहारा लेना भी कई बार कैंसर की जांच में देरी की वजह बनता है। यह दवाएं भारतीय लोगों के बीच उपचार के लोकप्रिय विकल्प हैं और कुछ प्रमुख अध्ययनों में इसका प्रमाण सामने आया है। हालांकि, इस तरह के उपचारों के उपयोग के लिए ओन्कोलॉजी के क्षेत्र में अधिक शोध की जरूरत है।