यूपी विधानसभा चुनाव: जातीय सम्मेलनों से मतदाताओं को रिझाएगी भाजपा

नई दिल्ली। सत्ता विरोधी रुझान को दूर करने के लिए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने उत्तर प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनावों से पहले हर जातीय तबके तक पहुंच बनाने का निर्णय लिया है। सूत्रों ने बताया कि इसके लिए पार्टी अगले दो महीने के दौरान प्रदेश में बड़े पैमाने पर जाति आधारित सम्मेलनों का आयोजन करेगी, जिनमें हर जाति को योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली प्रदेश सरकार की तरफ से उनकी भलाई के लिए उठाए गए कदमों की जानकारी दी जाएगी। सूत्रों ने कहा कि उत्तर प्रदेश में जाति आधारित समीकरणों को हल करने के लिए भाजपा अब जातीय सम्मेलनों का आयोजन करने जा रही है। निचली जातियों को ध्यान में रखकर ऐसे करीब 200 सम्मेलन पूरे प्रदेश में आयोजित किए जाएंगे। इनकी शुरुआत आगामी नवरात्रि से होगी और नवंबर तक इनका लगातार आयोजन होगा। जानकारी के मुताबिक किसी विधानसभा क्षेत्र के वोट प्रतिशत में जिस जाति का पलड़ा भारी होगा, वहां उसी जाति से जुड़ा सम्मेलन आयोजित किया जाएगा। सूत्रों ने कहा कि इन सम्मेलनों में भाजपा के सभी राज्य व राष्ट्रीय स्तर के नेताओं को शिरकत करने का निर्देश दिया गया है। खासतौर पर केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव, झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास, बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी, एसपी बघेल, कौशल किशोर, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह आदि को अपनी-अपनी जातियों के सम्मेलनों के आयोजन की जिम्मेदारी दी गई है। कुछ सम्मेलनों में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी भाग लेने पहुंचेंगे। जाति आधारित सम्मेलनों के अलावा भाजपा ने विभिन्न जातियों व उपजातियों के ऐसे प्रभावी लोगों को भी अपना सदस्य बनाने का लक्ष्य तय किया है, जिनके कहने पर उसके पक्ष में लोग वोट डालने आ सकते हैं। इनमें खासतौर पर ऐसे चेहरों को जोड़ने की कवायद चल रही है, जो फिलहाल किसी भी राजनीतिक दल से जुड़े हुए नहीं हैं। बता दें कि यूपी में अन्य पिछड़े वर्ग (ओबीसी) के तहत 79 जातियां, जबकि 66 अनुसूचित जाति (एससी) व उपजातियां हैं। ओबीसी में निषाद, यादव, सैनी, कुर्मी, लोध, प्रजापति, राजभर, मौर्य, तेली और कुशवाहा आदि और एससी में वाल्मीकि, जाटव, कोरी व पासी आदि जातियां बहुत सारे विधानसभा क्षेत्रों के वोट प्रतिशत में परिणाम बदलने लायक हिस्सेदारी रखती हैं। इनमें से कई जातियां विपक्षी दलों में से अलग-अलग का प्रमुख वोट बैंक मानी जाती हैं। भाजपा की कोशिश इन सम्मेलनों के जरिये इन जातियों को अपने पक्ष में लाकर विपक्षी वोट बैंक में सेंध लगाने की है।

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