मां लक्ष्मी का पूजन करने से जीवन के हर क्षेत्र में मिलती है सफलता: दिव्य मोरारी बापू

राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि दीपावली सनातन धर्म का विशेष महत्व का पर्व है। इससे अनेक कथाएं जुड़ी हुई हैं। पहली कथा- यह है कि जब समुद्र मंथन हुआ था, तो भगवती लक्ष्मी दीपावली के दिन ही प्रकट हुई थी। संसार में लक्ष्मी की बड़ी आवश्यकता है, सारा व्यवहार लक्ष्मी से ही चलता है। आज के दिन भगवती श्री लक्ष्मी माता का पूजन किया जाय तो जीवन के हर क्षेत्र में सफलता मिलती है। दूसरी कथा है कि भगवान् श्रीराम रावण का वध करके अयोध्या आये हैं, तो उनके आगमन की खुशी में दीपावली मनायी गयी। शास्त्रानुसार आज से लेकर एकादशी तक जो लोग मंत्रों का जप करते हैं, तो मंत्र सिद्ध हो जाया करते हैं। यदि आप किसी मंत्र की सफलता, सिद्धि चाहते हैं तो इन ग्यारह दिनों में जितना ज्यादा से ज्यादा हो सके मंत्रों का जप करना चाहिये। एक वर्ष जपने से जो फल मिलता है। वही फल इन ग्यारह दिनों में जप करने से मिल जाता है। मंत्र जागृति हेतवे- मंत्रों की जागृति इसमें हुआ करती है। इसलिए सभी धार्मिक लोगों को यह दिव्य संदेश है कि- इन दिनों में अपने इष्ट मंत्रों का जप और भगवान का पूजन करें। मंगल होगा। अगर व्यक्ति कार्तिकमास में सूर्योदय से पहले स्नान करें तो- चारों वेदों में जितने मंत्र हैं, वे सब जल में रहते हैं। जो सूर्योदय से पहले स्नान कर लेता है वो चारों वेदों के मंत्रों से मिश्रित जल से स्नान करने का फल प्राप्त करता है। एक दैत्य ने वेदों का हरण कर लिया था, भगवान उसका उद्धार कर चारो वेद वापस लाये। संसार के कल्याण के लिये ये मान्यता बना दी गई थी कि– कार्तिक मास में सूर्योदय से पहले स्नान हो जाना चाहिये। मंत्र भी सुप्त है, और भगवान शंकर के द्वारा कीलित हैं। दीपावली से एकादशी तक में मंत्रों को सिद्ध किया जाता है। मंत्र सिद्ध हो गया ये कैसे पता लगे? जब अपनी सम्पूर्ण इच्छायें पूरी होने लगे, तो मानना चाहिए कि मंत्र हमारा जागृत हो गया है। इच्छाएं भले न पूरी हो, मन में शांति आ गई हो तब भी मानना चाहिए की मंत्र हमारा जागृत हो गया है। मननात् त्रायत इति मंत्र- जिसका मनन करने से रक्षा हो, उसको मंत्र कहते हैं। ये दिन बहुत महत्व के है। इसमें सूर्योदय से पहले स्नान करना, तुलसी का पूजन करना, भगवान को तुलसी चढ़ाना, व्रत रखना, दान करना, कथा सुनना, यह सब करने से बहुत पुण्य होता है। बारह महीने में चार मास विशेष फलदायक होता है। कार्तिक माघ, वैशाख, श्रावण। हर दो महीने के बाद एक महीना परम पुण्यमय माना जाता है। कार्तिक मास है- मार्गशीर्ष और पौष मास छोड़ दो, फिर माघमास आ जायेगा। फाल्गुन और चैत्र छोड़ दो, फिर वैशाख आ जायेगा। जेष्ठ, आषाढ़ छोड़ो तो श्रवण मास आ गया। भाद्र और आश्विन छोड़ दो तो कार्तिक आ गया। ये चार महीना बहुत पुण्य के माने जाते हैं। चारों महीने में अलग-अलग पूजन-पाठ का विधान शास्त्रों में है। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं नवनिर्माणाधीन गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।

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