कोलकाता। प्रिवेंटिव डिटेंशन यानी एहतियाती हिरासत एक अपवाद व्यवस्था है, जिससे व्यक्ति की निजी स्वतंत्रता का हनन होता है। यह सामान्य गिरफ्तारी से ज्यादा कड़ी है, इसलिए इसका दुरुपयोग नहीं होना चाहिए। जब तक सभी कानूनी पहलू जरूरी न समझें, इसकी अनुमति नहीं देनी चाहिए। कलकत्ता हाईकोर्ट ने मादक पदार्थों की तस्करी के मामले में मालदा की विशेष अदालत द्वारा आरोपी के एहतियाती हिरासत का आदेश रद्द करते हुए टिप्पणियां कीं। जस्टिस रबींद्रनाथ साहत और जस्टिस सौमन सेन ने एहतियाती हिरासत की शक्ति के दुरुपयोग पर कड़ी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि व्यक्ति की नजरबंदी या एहतियाती हिरासत का चलन सही नहीं है, क्योंकि ऐसे मामलों में आरोपी कई बार पहले से जमानत पर होते हैं और उसे फिर हिरासत में ले लेने से व्यक्ति को जमानत देने का न्यायिक आदेश सीमित होकर रह जाता है। हाईकोर्ट ने कहा कि नजरबंदी के दौरान आरोपी पर सख्ती बरती जाती है। इसका उपयोग केवल आरोपी के पर कतरने के नाम पर नहीं होना चाहिए। किसी व्यक्ति की मनमानी गिरफ्तारी न हो, यह उसका मौलिक अधिकार है। जब तक यह बेहद जरूरी न हो या सख्त वजह न हो, ऐसा नहीं किया जाना चाहिए। निवारक निरोध गिरफ्तारी के सामान्य उपायों की तुलना में अधिक है, इसलिए निवारक निरोध को मानक आपराधिक अभियोजन के प्रत्यक्ष विकल्प के रूप में गलत नहीं माना जा सकता है।