संसार में परमात्मा है, और परमात्मा में संसार: दिव्य मोरारी बापू
राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी ने कहा कि नंदोत्सव, पूतनाउद्धार, शकटभंजन, तृणावर्त का उद्धार, नामकरण, माखन चोरी लीला, मृदभक्षण लीला, दामोदर लीला, ब्रज लीला में- ब्रह्मा जी का मोह, कालिया मान मर्दन, वेणूगीत, चीरहरण, यज्ञ पत्नियों पर कृपा और गोवर्धन पूजा की कथा का गान किया गया। परमात्मा व्यक्त भी है अव्यक्त भी हैं। मन-बुद्धि-इंद्रियों से जिसका ज्ञान होता है, वह भगवान् का व्यक्त रूप (साकार) है और जो मन-बुद्धि-इंद्रियों का विषय नहीं मन आदि जिसको नहीं जान सकते, वह भगवान का अव्यक्त रूप (निराकार) है। इसका तात्पर्य है कि भगवान् व्यक्त रूप से भी हैं और अव्यक्त रूप से भी हैं।सगुण-निर्गुण आदि एक ही परमात्मा के अलग-अलग विशेषण है। भगवान् कहते हैं- संपूर्ण प्राणी मेरे में स्थित भी हैं और नहीं भी है। उसी प्रकार मैं भी संपूर्ण प्राणियों में हूं और नहीं भी हूं। जिस प्रकार तरंग की सत्ता मानी जाय तो तरंग जल में है और जल में तरंग है। जल को छोड़कर तरंग रही नहीं सकती, तरंग जल से ही पैदा होती है और जल में ही विलीन हो जाती है। परंतु जब तरंग नहीं होती तो भी जल होता है। तरंग के होने न होने से जल पर कोई फर्क नहीं पड़ता। उसी प्रकार हम परमात्मा में हैं, परमात्मा में ही लीन हो जाते हैं। परंतु हम न रहे तो भी परमात्मा है। इस प्रकार हम कह सकते हैं, संसार में परमात्मा है और परमात्मा में संसार है। परमात्मा के सिवा संसार कुछ नहीं, हम कुछ नहीं। सब परमात्मा में हैं। शंभूगढ़ की पावन भूमि, पूज्य महाराज श्री-श्री घनश्याम दास जी महाराज के पावन सानिध्य में- श्रीमद्भागवत सप्ताह ज्ञानयज्ञ कथा के पंचम दिवस गोवर्धन पूजा की कथा का उत्सव महोत्सव मनाया गया। कल की कथा में श्रीरुक्मणी-कृष्ण-विवाह की कथा का गान किया जायेगा।