पुष्कर/राजस्थान। कथा के अमृत बिन्दु- दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि स्वतंत्र वह है जो जितेन्द्रिय है। स्वतंत्रता मनुष्य को स्वेच्छाचारी बनाती है। स्वतंत्र मत बनो, किसी संत को गुरु मानकर उनके अधीन रहो। गुरु बनाने से पूर्व देख लो कि जिसे गुरु मान रहे हो वह गुरु बनने लायक है भी, या नहीं। स्वदोष का वर्णन करो और भगवान् के गुणों का बखान करो। इससे भगवान् को तुम पर दया आयेगी। स्वदोष-दर्शन ईश्वर दर्शन के समान फलदायी है। स्वभाव अत्यंत शीतल रखो। काल, धर्म, स्वभाव आदि प्राणियों को कष्टदायी बनाते हैं। स्वभाव के अधीन मत बनो। स्वभाव को अपने अधीन रखो। खूब सत्कर्म करो। जप, ध्यान तथा सत्संग से स्वभाव सुधरता है। स्वभाव जल्दी नहीं सुधरता। सत्कर्म-जनित पुण्य की वृद्धि से ही स्वभाव सुधरता है। स्वयं खाने की अपेक्षा दूसरों को प्रेम से खिलाने में हजार गुना आनंद मिलता है। स्वाद लिये बिना शरीर को पोषण देने वाला भोजन करो। स्वार्थ मनुष्य को पागल बनाता है। स्वार्थ के जाग्रत होने से वह दूसरों का काम बिगाड़ने लगता है। दूसरों के अहित करने वाले का कभी भला नहीं होता। हाय-हाय करके हृदय मत जलाओ। आज से ही हरि-हरि जपने की आदत डालो। अभी से ही श्रीहरि का स्मरण करोगे तो अन्तकाल में श्रीहरि याद आयेंगे। हितभाषी तथा मितभाषी व्यक्ति सत्यवादी बन सकता है। हो सके तो मत्स्यावतार-चरित्र का पाठ करना। मध्य रात्रि में रास-पंचाध्यायी का पाठ करना। हृदय में श्री कृष्ण रहेंगे तो दुःख का असर नहीं होगा। हृदय से राम के निकल जाने पर मनुष्य बुराइयों की तरफ चला जाता है। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं नवनिर्माणाधीन गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना-श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला अजमेर (राजस्थान)।