श्री कृष्ण जगतगुरु हैं। इसलिये उनके उपदेश की बातें सारे जगत् के लिये हैं। भगवान् कृष्ण बहुत ऊंचाई से गीता के माध्यम से जगत् को बोध देते हुए नजर आते हैं। भगवान् श्रीकृष्ण के लिये सारा संसार एक परिवार है। अयं निजः परोवेत्ति गणना लघुचेतसाम्। उदार चरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्।। वसुधा पर जो सुधा है उसका नाम है गीता। यह सुधा स्वर्ग के देवों को प्राप्त नहीं है। इसलिये स्वर्ग के देवताओं की तुलना में पृथ्वी पर मानव जन्म धारण करके गीता रूपी अमृत का पान करना बड़े सौभाग्य की बात है। स्वर्ग की सुधा पुण्य से मिलती है। वसुधा की यह सुधा, प्रभु की कृपा से प्राप्त होती है। हमारा शरीर ही धर्मक्षेत्र और कुरुक्षेत्र है। सुबह जब हम जागते हैं, तब से यह क्षेत्र कुरु, कुरु, कुरु, दंत मंजन करो, स्नान करो, रसोई करो, जॉब करो, कर्म करने के लिये तो हमें यह शरीर मिला है। हमें रसोई घर में, व्यापार धंधे में, सभी कार्यों में धर्म होना चाहिए। ऐसा करेंगे तो हमारी प्रत्येक क्रिया पूजा बन जायेगी। सुबह उठते समय हथेली में भगवान् का दर्शन करते-करते उठना चाहिए। कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती। करमूले तू गोविंदः प्रभाते करदर्शनम्।। नींद से उठकर धरती पर पांव रखने के साथ ही धरती को वंदन करना चाहिए। स्नान करने बैठते हैं तो तीर्थों को याद करके स्नान करना चाहिए। अगर हम भाव रखेंगे तो ये सब तीर्थ हमारे स्नान के जल में अपने आप उपस्थित हो जायेंगे। हमें सभी तीर्थों में स्नान का फल मिलेगा। इन तीर्थों को बुलाने का एक मंत्र है- गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति। नर्मदे सिंधु कावेरी जलेस्मिन् सन्निधि कुरु।। आंख बिगड़ने से मन बिगड़ता है, मन बिगड़ने से व्यवहार बदलता है। व्यवहार बिगड़ने से आचरण बिगड़ता है, आचरण बिगड़ने से जीवन बिगड़ता है और जीवन बिगड़ने से मरण निश्चित रूप से बिगड़ जाता है। अतः जीवन व्यर्थ न हो जाय सावधान रहें। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं नवनिर्माणाधीन गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।