पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्या मोरारी बापू ने कहा कि शक्ति पाना हो तो भीतर आओ। ज्ञान पाना हो तो भीतर आओ। आनन्द पाना हो तो भीतर आओ। बाहर से नहीं, उछल कूद से नहीं। शांत हो, संयमी हो, उपरत हो, सहनशील बनो। समाधि संपन्न बनो तब तुम्हें शक्ति मिलेगी। जड़ र्सीचो तो वृक्ष हरा भरा रहेगा।
मनुष्य भी एक वृक्ष है, इसकी भी जड़े हैं, विद्वान बनो, बलवान बनो, बुद्धिमान बनो, लेकिन जड़ र्सीचो। प्रेम प्रकाश है। वासना धुआं है। जहां प्रेम है, वहां प्रकाश है। वहीं ज्योति है। जहां वासना है, वहां धुआं है। धुएं से घुटन होती है, जलन होती है। प्रेम के प्रकाश में सत्य दिखता है। भगवान् की लीला, भगवान् का स्वरूप, भगवान् का नाम और भगवान् का धाम वह चारों मंगल करने वाले हैं।
वास्तव में यह चारों एक ही हैं। चारों में से किसी एक का आश्रय किया तो हमारा कल्याण ही होता है।स्वरूप की सेवा होती है, छवि की पूजा-अर्चना होती है। पूजा में विधि प्रधान है। किस देवता की किस फूल से पूजा होगी? कौन सा फूल किस देव के लिए निषेध है? तुलसी, अक्षत किस देव पर नहीं चढ़ेगा? इस सबका एक विधान है।
पूजा का एक विधान है, जिसे सीख लेना चाहिए। पूजा श्रद्धा के साथ हो। यह खिलौना नहीं है। पूजा में विधि है। सेवा में स्नेह का महत्व है, लेकिन स्वरूप सेवा में बिना प्रेम के सेवा नहीं होती, इसका ज्ञान होना चाहिए। इसलिए भगवान कहते हैं कि भक्तों में मुझे ज्ञानी भक्त सबसे अधिक प्रिय है। सेवा जब सुख देने लगे तो समझना, वो सेवा सेवा नहीं रह जायेगी वो पूजा हो जायेगी।
सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं श्री दिव्य घनश्याम धाम गोवर्धन से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम काॅलोनी, दानघटी,बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।