पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्या मोरारी बापू ने कहा कि जिसके मन में प्रसन्नता हो उसको प्रतिकूलता कहीं नजर ही नहीं आयेगी, इसलिये प्रसन्न रहो। शिकायत कम करें, भगवान् श्रीराम मां कैकेयी का आभार मानते हुए, मुक्ति का आनंद लेते हुए, वन की ओर गये। पिता दीन्ह मोहि कानन राजू। जहँ सब भांति मोर बड़ काजू। तो हम श्रीराम के चरित्र से सीखें कि हम शिकायत कम से कम करें और जो परिस्थिति आ जाय स्वीकार कर लें। मनस्थिति ऐसी बनायेंगे कि सदा मौज में रहेंगे, मस्त रहेंगे और जितना हो सकेगा समाज को प्रदान करते रहेंगे। राजराजेंद्र श्रीदशरथ जी महाराज की तीनों रानियां वेदों के तीन कांड हैं। ज्ञानकांड, उपासना कांड और कर्मकांड। कौशल्या है ज्ञानकांड, सुमित्रा है उपासना कांड और माता कैकेयी है कर्मकांड। तीनों माताएं भगवान् राम को भिन्न भिन्न रूप में देखती हैं। कैकेयी ने आध्यात्मिक दृष्टि में रामराज्य के राम को जन्म दिया है। रघुवंश के राम को माता कौशल्या ने जन्म दिया है। रघुवंश का राम आदरणीय है, वंदनीय है। लेकिन रामराज्य का राम पूजनीय है। रामराज्य के राम ने त्याग और समर्पण का कीर्तिमान स्थापित किया है। रामराज्य के राम की जननी है, माता कैकेयी। पुत्र को जन्म देना होता है, तो प्रसव पीड़ा सहनी पड़ती है। कैकेयी ने भी पीड़ा सहन की, पति की मृत्यु हो गई, बेटा रूठ गया। कैकेयी ने खुद कलंक सहा मगर श्री राम जी की कीर्ति को उज्जवल किया है। अपनी आंखों से देखेंगे तो कैकेयी निंदनीय लगेगी, लेकिन उन्हें श्रीराम की आंखों से देखें, तो कैकेयी वंदनीय देखेंगी। वन गमन-श्री राम का चरित्र सभी जाति, वर्णों के लिये अनुकरणीय हो गया है। एक श्लोकी रामायण के रचयिता भी राम वनगमन से ही सच्चे रामायण का आरंभ समझते हैं। आदौराम तपोवनादि गमनं हत्वामृगं कांचनम्, वैदेहीहरणं जटायुमरणं सुग्रीव सम्भाषणं। बाली निर्दलनं समुद्र तरणं लंकापुरी दाहनं, पश्चाद् रावण कुम्भकरणहननं एतद्धि रामायणं। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम काॅलोनी, दानघाटी,बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन जिला-मथुरा (उत्तर-प्रदेश)श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।