पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि भक्ति का पर्व होलिका दहन एवं रंगोत्सव (होली) भक्त प्रहलाद की कथा दो प्रकार से है। पहली कथा है भक्त प्रहलाद सनकादिक कुमारों में श्री सनत कुमार जी के अवतार थे। इसलिए उनमें जन्म से भगवान् की दृढ़ भक्ति विद्यमान थी और दूसरी कथा है की इनके बाल्यकाल में एक ऐसी घटना घटी जिससे भक्त प्रल्हाद का भगवान् की भक्ति में दृढ़ विश्वास हो गया। कथा इस प्रकार से है कि एक कुम्भकार ने मिट्टी के बर्तन का आवां लगाया। जब आवां प्रज्वलित कर दिया, तब उसे ध्यान आया की एक घड़े में बिल्ली के बच्चे थे। कुम्भकार की पत्नी आवां के चारों तरफ घूम-घूम कर सीताराम-सीताराम पुकार रही थी। भक्त प्रल्हाद छोटे बालक थे, उन्होंने उसका कारण पूछा कि तुम्हारे साथ बिल्ली भी घूम रही है और तुम्हारे आवां के चारो तरफ घूमने का कारण क्या है? तब कुम्भकार की पत्नी ने बालक प्रह्लाद को सारी बात बतायी, और कहा भगवान् उन बच्चों की रक्षा कर लेंगे। भक्त प्रह्लाद ने कहा कि हमारे पिता कहते हैं कि भगवान् वह स्वयं है। कुम्भकार की पत्नी भगवान् की भक्त थी। उसने कहा तुम्हारे पिता भगवान् जरूर हैं लेकिन मारने वाले भगवान हैं, और मैं जिन भगवान् के नाम का जप कर रही हूं वह सबकी रक्षा करने वाले भगवान् हैं। वही शाश्वत भगवान् हैं। भक्त प्रह्लाद ने कहा अगर बिल्ली के बच्चे बच गये तो हम भी भगवान् श्री राम की भक्ति करेंगे और अगर ऐसा नहीं हुआ तो पिता से तुम्हारी शिकायत करके तुम्हें दंडित करवायेंगे। मिट्टी के बर्तन का आवां में इतनी ज्यादा आग होती है कि बहुत दूर तक उसका ताप जाता है, लेकिन भगवान् ने उन बच्चों की रक्षा कर लिया। जब आवां ठंडा हुआ तो सारे बर्तन पक गये, लेकिन जिस घड़े में बिल्ली के बच्चे थे वह घड़ा बिल्कुल कच्चा था और घड़ा निकालते ही बच्चे उछल-उछल करके बाहर चले गये। इससे भक्त प्रह्लाद जी की भगवान् में बड़ी दृढ़ निष्ठा हो गयी। बाल्यकाल में ही प्रह्लाद जी ने भगवान् का बहुत भजन किया।
नाम जपत प्रभु कीन्ह प्रसादू। भगत शिरोमणि भै प्रहलादू। श्री प्रल्हाद जी भक्त शिरोमणि हो गये। सनकादिकों के श्राप के कारण हिरण्यकशिपु भगवान् से विरोध करता था। वह भगवान् के नाम से चिढ़ता था। भक्त शिरोमणि श्री प्रह्लाद जी को उसने भगवान् से विमुख करने का बहुत प्रयास किया, लेकिन भक्त प्रल्हाद की भक्ति का रंग बड़ा पक्का था। उनको विचलित करना आसान नहीं असंम्भव था। हिरण्यकशिपु कहता है कि हमसे मूर्तिमान काल भी भयभीत होता है। तुम्हें हमारा डर नहीं लगता भक्त प्रल्हाद कहते हैं। राम नाम जपतां कुतो भयं। श्रीराम तापनी उपनिषद में भक्त प्रह्लाद जी कहते हैं कि- राम नाम जपने वाले को क्या भय है? अर्थात् कोई भय नहीं है। होली का पर्व भक्त प्रह्लाद जी की दृढ़ भक्ति की विजय का पर्व है। इस प्रसंग में हिरण्यकशिपु भगवान् की भक्ति के विरोध वाले अभियान में असफल हुआ। भक्त शिरोमणि श्री प्रह्लाद जी सफल हुये। तभी से एक दिन पहले होलिका दहन और दूसरे दिन भक्तजन मिलकर के होली का उत्सव महोत्सव मनाते हैं, मनाना भी चाहिए। क्योंकि यह भक्त की विजय का पर्व है। सज्जनों की विजय का पर्व है। सच्चाई,सत्य, सदाचार की विजय का पर्व है। इसे तो हर भारतवासी को मनाना चाहिए।एक समय ऐसा था कि लोग धर्म से विमुख हो रहे थे। धर्म को भूल रहे थे। उस समय छत्रपति शिवाजी के गुरु देव समर्थ गुरु रामदास जी ने एक बहुत बड़ा संत सम्मेलन किया है। संत सम्मेलन महाराष्ट्र में हुआ। पूरे भारतवर्ष के संत इकट्ठा हुये और वहां यह चर्चा हुई कि धर्म विहीन समाज जीव जंतुओं के समान हो जायेगा। अथवा उससे भी निम्न हो जायेगा। क्योंकि हर जीव का अपना कोई सिद्धांत है लेकिन मनुष्य अगर धर्म सिद्धांतों से अलग हो जायेगा। तब उसका पतन हो जायेगा। इसलिए धर्म प्रचार आवश्यक है । वहां सभी संतो ने धर्म प्रचार के लिए अलग-अलग बातें कहीं। किसी ने कहा हम यज्ञ के माध्यम से लोगों के बीच में जायेंगे और उन्हें शत-सदाचार की शिक्षा देंगे। उस सभा में समर्थ गुरु रामदास जी ने अपने लिए यही निर्णय लिया कि हम हिंदू धर्म के जितने त्यौहार हैं उन पर्वों को गांव-गांव लोगों से मनवा करके उनके अंदर धर्म की भावना को दृढ़ करेंगे। ताकि माता-पिता,समाज, राष्ट्र और जीव मात्र के प्रति जो हृदय में सम्मान होना चाहिए वह सम्मान लोगों के हृदय में बना रहे। होली के उत्सव पर रंग और गुलाल का आध्यात्मिक अभिप्राय यही है कि मनुष्य के हृदय में भी दृढ़ भक्ति का रंग चढ़े। लाल गुलाल लाल भाये अंबर। इतना गुलाल उड़ता है कि अंबर आकाश भी लाल हो जाता है। सभी भक्तों का जीवन सफल हो जाय ।इसी मंगल कामना के साथ पवन होली महोत्सव की मंगल कामना। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम काॅलोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।