राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि जगद्गुरु श्री रामानंदाचार्य भगवान् का मंगलमय चरित्र एवं श्री राम जन्म की कथा का गान किया गया। जिस प्रकार श्रीरघुनाथ जी ने वानरों की सेना को पार करने के लिए समुद्र पर पुल बनवाया था उसी प्रकार श्रीरामानंदाचार्य जी ने संसारी-जीवों को भवसागर से पार करने के लिए अपनी शिष्य- प्रशिष्य परंपरा से सेतु निर्माण कराया। श्रीअनंतानंदजी, श्रीकबीरदासजी, श्रीसुखानंदजी, श्रीसुरसुरानंदजी, श्रीपद्मावतीजी, श्रीनरहरियानंदजी, श्रीपीपाजी, श्रीभवानंदजी, श्रीरैदासजी, श्रीधनाजी, श्रीसेनजी, और श्रीसुरसुरानंद की पत्नी, ये श्रीरामानंदाचार्यजी के सर्व प्रधान द्वादश शिष्य थे। इनके अतिरिक्त और भी बहुत से शिष्य-प्रशिष्य एक से एक प्रसिद्ध एवं प्रतापी हुए। ये संसार का कल्याण करने वाले भक्तों के आधार और प्रेमाभक्ति के खजाने धे। श्रीरामानंदाचार्यजी ने बहुतकाल तक शरीर को धारणकर शरणागत जीवों को संसार-सागर से पार किया। सत्संग के अमृतबिंदु-आचरण- जहां आचार-विचार की शुद्धि है, वही भक्ति परिपुष्ट होती है। सदाचार नींव है, सद्विचार भवन है, नीवें मजबूत होंगी तो भवन टिक सकेगा। गर्भवती स्त्री के आचार-विचार का गर्भस्थ शिशु पर बहुत गहरा असर होता है। स्नान से शरीर की शुद्धि, ध्यान से मन की शुद्धि और दान से धन की शुद्धि होती है। ध्यान का सच्चा आनंद तो प्रातःकाल में ही प्राप्त किया जा सकता है।ज्ञान का रूप यदि क्रिया में परिवर्तित नहीं होता तो वो रूखा है।सत्य को जानने के बाद यदि आचरण में ढालें, तभी वह काम का है। ज्ञान की सार्थकता बात करने में नहीं, उसे पचाने में है।दुर्लभ मानव-देह प्रदान करने वाले माता-पिता के उपकार को कैसे भुलाया जा सकता है। ज्ञान को अपने अनुभव में ढालने की आदत डालो। संयम और सदाचार के बिना सुख और शांति कहां से प्राप्त हो। हम गीता का पाठ करते हैं तो अनासक्ति का आचरण भी करें। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम काॅलोनी,दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन,जिला-मथुरा (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम, सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान )।