पुष्कर/राजस्थान। मां शबरी वन में निवास करती थी, सब लोग इन्हें शबरी कहते थे। मां शबरी के मन में साधु-संतों की टहल करने की बड़ी इच्छा थी। पर शरीर भील जाति का था, साधु-संत सेवा स्वीकार नहीं करेंगे इसलिए उनके समीप नहीं जाती थी। थोड़ी रात रहने पर वह ऋषियों के आश्रम में छिपकर जाती और लकड़ियों के बोझ रख आतीं। यह सेवा उन्हें बहुत अच्छी लगती थी। प्रातःकाल शीघ्र ही उठकर सरोवर पर जाने-आने के मार्ग को झाड़ बुहारकर उसकी कंकड़ियों को बीनकर अलग डाल देती थी। यह सेवा करते हुए इनको कोई भी नहीं देख पाता था। सवेरे उठकर ऋषि लोग आपस में कहते कि- मार्ग को नित्य कौन झाड़ जाता है। और लकड़ियों के बोझ कौन रख जाता है। सभी मन में सोचते कि- कोई बड़ा-भारी सुख देने वाला सेवक है। सत्संग के अमृतबिंदु- विवेक से थोड़ा सुख भी भोगना चाहिए और भक्तिमय जीवन यापन करके भगवान को भी प्राप्त करना चाहिए। शरीर में चाहे रहो, पर शरीर से अलग हो इस भावना से जिओ। मनुष्य चतुर तो है, पर बिना ठोकर लगे सयानापन नहीं आता। जिसके जीवन में न कोई संयम है, और न ही प्रभु भक्ति का कोई नियम, उसका जीवन बेकार है। यौवन हमेशा टिकने वाला नहीं है। सत्संग के बिना विवेक जागृत नहीं होता और स्वदोष का भान नहीं होता। यदि योग्य हो तो नई बात स्वीकार करो, किंतु पुराने को मत छोड़ो। जिसमें विवेक नहीं है, वे संसार रूपी नदी में डूब मरते हैं। विवेक से भोग भोगो,भक्ति से भगवान को प्राप्त करो। यदि विवेक जागृत है, तो विपत्ति भी संपत्ति बन जाती है। प्राप्त वस्तु को छोड़ना पड़े, इसके पहले उसका उपयोग दूसरों के लिए करो। सिद्धि मिलने पर तो और अधिक सावधानी और अतिसंयम आवश्यक है। परम पूज्य संत श्री घनश्याम दास जी महाराज ने बताया कि-कल की कथा में श्रीराम भक्त हनुमान जी महाराज की कथा का वर्णन किया जायेगा। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम काॅलोनी, दानघाटी,बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन जिला-मथुरा,
(उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)