पुष्कर/राजस्थान। सहस्त्रमुख वाले शेष भगवान के अवतार श्री रामानुजाचार्य जी ने भक्तिपथ का उपदेश देकर संसार से उद्धार का महान प्रयत्न किया। गुरुदेव ने मंत्र देकर जिसे गुप्त रखने के लिए कहा था उसे श्रीरामानुजाचार्यजी ने मंदिर द्वार के सबसे ऊंचे भाग पर चढ़कर ऊंचे स्वर से उच्चारण किया ताकि सभी लोग श्रवण कर सकें। मंत्र ध्वनि को सुनकर सोये हुए लोग जाग पड़े और बहत्तर भक्तों ने उसे सुनकर हृदय में धारण कर लिया। इसलिए अलग-अलग बहत्तर पद्धतियां हुईं।इनके शिष्यों में कुरूतारक जी प्रधान थे जो जीवो का मंगल करने वाले और भक्ति के मूर्तिमान स्वरूप थे। दीन-शरणागतगतों का पालन करने वाले करुणा के समुद्र श्रीरामानुजाचार्यजी के समान दूसरा कोई नहीं हुआ। सत्संग के अमृतबिंदु- पुण्य- तीर्थ भूमि में किया हुआ सत्कर्म अधिक श्रेयस्कर होता है। जो पुण्य के काम में सहयोग देता है, वह भी पुण्य का भागी बनता है। मान-अपमान में मन को शांत रखना महान पुण्य का कार्य है। तीर्थ में मौज-शौक के लिए नहीं, तप करके पवित्र होने के लिए जाना चाहिए। पाप न करना ही महान पुण्य है। आशीर्वाद- अंतर के आशीर्वाद मांगने से नहीं, सेवा करने से मिलते हैं। स्वयं का यश दूसरों को देने वाला ही सबके आशीर्वाद को प्राप्त करता है। जो सेवा द्वारा सबके आशीर्वाद प्राप्त करता है, उसे सर्वेश्वर मिलते हैं। वासना राक्षसी- भोगों से कभी तृप्ति नहीं होती। उनसे तो वासनाएँ बढ़ती जाती है और भोगने वाले का ही भक्षण कर जाती है। वासना ऐसी भिखारिन है जो खिलाने वाले को खा जाती है। सुख भोगने की वासना ही बहुत दुःख देती है। वासना ही पुनर्जन्म का कारण है। विवेक और संयम से ही वासना शांत होती है। परम पूज्य संत श्री घनश्याम दास जी महाराज ने बताया कि कल की कथा में भक्तमाल के अनेक भक्तों की कथा के साथ-साथ भक्त शिरोमणि श्री लालाचार्य जी महाराज की मंगलमय कथा होगी। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम काॅलोनी, दानघाटी,बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन,जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।