राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि कथा का प्रसंग-भक्त शिरोमणि श्री जयमल सिंह जी की मंगलमय कथा। राजा भक्त श्रीजयमलसिंहजी का निवास पहले मेड़ता नगर में था। श्रीठाकुरजी की सेवा पूजा में उनका बड़ा-भारी अनुराग था। उसमें उन्हें जरा-सा भी खुटका अच्छा नहीं लगता था। वे नित्य अपने मंदिर में नियम से दस घड़ी सेवा करते थे। उनका नियम यह था कि- सेवा के समय में यदि कोई किसी भी प्रकार का समाचार आकर देता तो वह उसे भक्ति में व्यवधान मानते थे, उसे सुनते नहीं थे। (इस भय से कोई भी उनके पास नहीं जाता था) जयमल जी का एक भाई था वह उनका बैरी था। इस भेद को पाकर उसने पूजा के समय बड़ी- भारी सेना लाकर नगर को चारों ओर से घेर लिया। किसी को ऐसा साहस नहीं हुआ कि यह समाचार उन्हें सुनावे। तब श्री जयमल जी की माता ने जाकर सब बात सुनायी। सुनकर इन्होंने केवल यही कहा कि भगवान सब भली करेंगे’ वे ज्यों के त्यों सेवा में लगे रहे। अपने भक्त का संकट दूर करने के लिए स्वयं प्रभु पधारे और घोड़े पर चढ़कर रणभूमि में गये। उन्होंने अकेले ही शत्रु की सेना को मार भगाया। घोड़े को घुड़साला में बांधकर अंतर्धान हो गये। सब लोग शत्रु के पराजय की चर्चा करके सुखी हुए। सत्संग के अमृतबिंदु-काम और राम-आंख और कान के दरवाजे पर सात्विकता के चौकीदार नियुक्त करो।काम कच्चा सुख है, सच्चा सुख श्रीराम है। काम है तो शत्रु, किंतु मित्र जैसा दिखावा करके धोखा देता है। काम ही जीव को बंधन में डालता है, काम ही जीव को ईश्वर विमुख करता है। काम ही जीव को रुलाता है। विलासी लोगों से तो भगवान भी दूर भगते हैं। अति कामी का संग ही बड़ा कुसंग है, उससे बचते रहो। जीव प्रकृति का दास बनकर घूमता है, इसीलिए दुःखी होता है। शिव प्रकृति के पति हैं । इसलिए वे उसे बस में रख सकते हैं। जो इंद्रियों का दास है, उसके प्रति परमात्मा सदा उदास रहता है। जो इंद्रिय वृत्तियों को सहलाता है, उसे पछताना पड़ता है। इंद्रिय वृत्तियों के नौकर नहीं मालिक बनो। भोग भोगने से क्षणिक सुख मिलता है, परशांति नहीं मिलती। परम पूज्य संत श्री घनश्याम दास जी महाराज ने बताया कि कल की कथा में राजस्थान चित्तौड़गढ़ के भक्त श्रीभुवनसिंहजी की कथा का गान किया जायेगा। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।