नई दिल्ली। अमेरिकी डालर के मुकाबले रुपये के मूल्य में 20 पैसे का सुधार होने से यह 77.24 रुपये के स्तरपर आ गया है, जो राहत की बात अवश्य है लेकिन एक दिन पूर्व रुपया 54 पैसे टूटकर 77.44 रुपये के स्तर पर पहुंच गया था। रुपये का कमजोर होना आर्थिक मोरचे पर गम्भीर चिन्ता का विषय है। यह अब तक का सबसे निचला स्तर था। रुपये के कमजोर होने से अनेक वस्तुओं और सेवाओं का महंगा होना आम जनता के लिए परेशानी का सबब है।
ब्याज दरों में वृद्धि और वैश्विक आर्थिक वृद्धि में कमजोरी की बढ़ती आशंकाओं के कारण दबाव बना हुआ है। रुपये में गिरावट का सबसे अधिक असर आयात पर पड़ता है। भारत में आयात होने वाली सभी वस्तुएं महंगी हो जाती हैं। देश में 80 प्रतिशत कच्चा तेल आयात होता है। इसके लिए विदेशी मुद्रा अधिक खर्च करनी पड़ती है। रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर अभी अनिश्चितता बनी हुई है। इससे कच्चे तेल के दाम में भी तेजी का रुख बना हुआ है। इसके अतिरिक्त इलेक्ट्रानिक सामान भी महंगे हो जाएंगे।
अमेरिका के केन्द्रीय बैंक फेडरल रिजर्व की तरफ से ब्याज दरों में बढ़ोतरी के कारण विदेशी निवेशक तेजी से विकासशील देशों के बाजार से अपना निवेश निकाल रहे हैं। उन्हें भी डालर में निवेश करना अधिक लाभकारी दिख रहा है। इसलिए विदेशी निवेशक भारत से 22 अरब डालर पिछले सात माह में निकाल चुके हैं। रुपया के मूल्य में गिरावट के कई कारण हैं। भारत सहित विश्व के सभी देशों में महंगाई का दबाव बना हुआ है।
रिजर्व बैंक और अन्य देशों के केन्द्रीय बैंकों की ओर से ब्याज दर बढ़ाये जाने से डालर की मांग में तेजी आयी है। ऐसी स्थिति में अभी यह नहीं कहा जा सकता है कि आने वाले दिनों में रुपए के मूल्य की क्या दशा होगी। शेयर बाजार के साथ ही वैश्विक स्थितियों पर काफी कुछ निर्भर करता है कि रुपया किस दिशा की ओर जाएगा। रुपये का मजबूत होना देश की अर्थव्यवस्थाके लिए आवश्यक है।