राजस्थान। श्री रुक्मणी जी के समेत भगवान श्रीकृष्ण के आते ही विवाहोत्सव की चहल-पहल आरंभ हो गई। जहां-तहां विविध प्रकार के व्यंजन बनने लगे। महिलाएं मंगल गान करने लगीं। ढोल नगाड़े आदि अनेक प्रकार के मांगलिक बाजे इतने ऊंचे स्वर से बजने लगे कि एक की बात बात दूसरे को सुनाई नहीं देती थी। पटरानी श्री रुक्मिणी देवी ने स्वयं अपने हस्त कमल से वर के मुख को विचित्र बेल बूटों से चित्रित किया। जिसके शरीर में रंग बिरंगी छापे लगे हैं। ऐसे उमंग के रंग में रंगे नये घोड़े पर बर चढ़ाकर नगर में भ्रमण कराया गया। उसके बाद ज्यौनार हुई, जिसमें असंख्य मनुष्यों ने आकर खूब अच्छी तरह से भोजन किया। ब्राह्मणों ने भोजन करके ‘समान घट जाय, नरसी जी की हंसी हो जाय, इस विचार से पारस के नाम पर गठरियों को बांध कर ले जाने लगे। परंतु सभी वस्तुएं भंडार में इतनी भरी थी कि उनमें समाती नहीं थीं। बारात सजने लगी।हाथी, घोड़ा, ऊंट, रथ और पालकी आदि वाहनों, साज- बाज, मणियों-रत्नों से जड़े हुए थे। यथा योग्य सवारियों पर चढ़े हुये किशोरावस्था के दिव्य पुरुष अपनी मस्ती से झूमते हुए आभूषणों के शब्द एवं उनकी चमक से सुशोभित हो रहे थे। इस प्रकार श्रीनरसी जी के पुत्र का विवाह भगवान ने स्वयं कराया।
सत्संग के अमृत बिंदु- परमात्मा का नाम गुण- मग्न होकर उच्च स्वर से परमात्मा का नाम और गुण कीर्तन करने से भी मन परमात्मा में स्थिर हो सकता है। भगवान चैतन्यदेव ने तो मन को निरुद्ध कर परमात्मा में लगाने का यही परम साधन बतलाया है। भक्त जब अपने प्रभु का नाम कीर्तन करते-करते गद्- गद् कंठ, रोमांचित और अश्रुपूर्ण लोचन होकर प्रेम के बस में अपने आप को सर्वथा भुलाकर केवल परमात्मा के रूप में तन्मयता प्राप्त कर लेता है, तब भला मन को जीतने में और कौन सी बात शेष रह जाती है? अतएव प्रेम पूर्वक परमात्मा का नाम कीर्तन करना मन पर विजय पाने का एक उत्तम साधन है। परम पूज्य-संत श्री घनश्याम दास जी महाराज ने बताया कि कल की कथा में नानी बाई के मायरे की कथा होगी। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी,बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन,जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।