पुष्कर/राजस्थान। माता पार्वती का नामकरण संस्कार, विद्या अध्ययन, शिव की प्राप्ति के लिए कठिन तप, उनकी शिव भक्ति की परीक्षा, शिव बारात और शिव पार्वती के विवाह की कथा का गान किया गया। नामकरण संस्कार- पर्वतराज हिमाचल की पुत्री होने के नाते पार्वती नाम रखा, पूरे भुवन में बसती हैं इसलिए भवानी, संपूर्ण जगत की मां है इसलिए जगदंबा, तीनों लोकों को धारण करने वाली हैं इसलिए उमा, माताजी के अनंत नाम है। इस प्रसंग में भगवान व्यास हम आपको शिक्षा देते हुए कहते हैं कि- हम बालक अथवा बालिका का नाम रखें, तो अपने समाज और राष्ट्र के अनुकूल रखें । बच्चों के नाम का भी कोई अर्थ होना चाहिए। पश्चिमी सभ्यता का अंधानुकरण ठीक नहीं है। भारतीय संस्कृति की मान्यता है कि हमें अच्छाई किसी की भी ग्रहण करना चाहिए लेकिन बुराई तो किसी की भी नहीं ग्रहण करना चाहिए। विद्या अध्ययन-मां पार्वती तो समस्त विद्याओं की मूल है, सारी विद्यायें तो मां से ही प्रकट हुई है। फिर भी मां पार्वती लीला में विद्या अध्ययन करती हैं, इससे हम आपको यही उपदेश है कि हमें भी विद्या अध्ययन करना चाहिए और योग्य बनना चाहिए।
भगवती पार्वती के द्वारा तप- तप का अर्थ होता है इंद्रियों को तत् तत् विषयों से मोड़कर मन को भगवान् से जोड़ने का नाम तक है। तप से संस्कृत में तपति शब्द बनता है जिसका अर्थ होता है ऊपर की तरफ उठना। और अगर हम तप नहीं करते तो तप का उल्टा होता है पत। पत से संस्कृत में प्रतति शब्द बनता है, जिसका अर्थ होता है नीचे की तरफ गिरना। आज कोई व्यक्ति किसी भी क्षेत्र में अगर बहुत ऊंचाई प्राप्त किया है तो उसके पीछे उसका तप है और अगर हम जितनी ऊंचाई पाना चाहिए नहीं पा सके, तो धर्मशास्त्र कहते हैं कि हमारे जीवन में तप का अभाव रहा। सप्तर्षियों के द्वारा भगवती पार्वती की परीक्षा और मां पार्वती का सफल होना। लोग कहते हैं जो भगवान की भक्ति करते हैं अथवा अच्छे लोग हैं परमात्मा भी उन्हीं की परीक्षा लेता है। शास्त्र कहते हैं जो अच्छे हैं उन्हीं की परीक्षा होनी चाहिए, परीक्षा से जीवन में निखार आता है। बस बात इतनी सी है कि परीक्षा में सफल होने का प्रयास करना चाहिए। शिव बारात-भगवान शंकर की बारात का बड़ा मनोवैज्ञानिक वर्णन किया गया है। शिव की बारात में देवता, ॠषिमुनि, मनुष्य, भूत-प्रेत, शाकिनी- डाकिनी सब कोई थे लेकिन शिव अपने ही स्वरूप में रहे। हम लोगों को शिक्षा है कि संसार में सब होंगे लेकिन हमें अपने स्वरूप से गिरना नहीं है। शिव विवाह-भगवान् शिव विश्वास के मूर्तिमान स्वरूप हैं और माता पार्वती श्रद्धा स्वरूप है। शिव विवाह का एक आध्यात्मिक आशय है कि हमारे जीवन में श्रद्धा विश्वास का मिलन हो तो जीवन सफल ही सफल है। परम पूज्य संत श्री घनश्याम दास जी महाराज ने बताया कि- कल की कथा में श्रीशिवमहापुराण की रुद्रसंहिता, कुमारखंड की कथा होगी। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी,बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)