नई दिल्ली। पूरा विश्व इस समय प्रदूषण की भयावहता को लेकर सहमा हुआ है। कारण यह है कि प्रदूषण जनित रोगों से मरने वालों की संख्या भी बढ़ती जा रही है। इनमें सबसे अधिक प्राण घातक वायु प्रदूषण है। मानव जीवन की रक्षा के लिए पर्यावरण संरक्षण को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी होगी। इसके लिए एक बड़े जनान्दोलन की जरूरत है। इस गंभीर मुद्दे को सिर्फ सरकार के ऊपर नहीं छोड़ा जा सकता है। इसमें जन-जन की सक्रिय भागीदारी आवश्यक है तभी कुछ अच्छे परिणामों की उम्मींद की जा सकती है। लांसेट कमीशन की ताजा रिपोर्ट में जो आंकड़े आए है वह डराने वाले है। उसमें बताया गया है कि वर्ष 2019 में 90 लाख से अधिक लोगों की मृत्यु का कारण वायु प्रदूषण है।
यह विश्व की कुल मौतों का 16 प्रतिशत है। विश्व में हर छठें व्यक्ति की मृत्यु का कारण प्रदूषण है। अकेले वायु प्रदूषण से एक वर्ष में 66.7 लाख मौतें हुई हैं, जो गंभीर चिन्ता का विषय है। भारत में भी प्रदूषण की स्थिति काफी गंभीर है। एक वर्ष में 23.5 लाख लोगों की असमय मृत्यु प्रदूषण के कारण हुई है, इनमें 16.7 लाख लोगों की मृत्यु वायु प्रदूषण के कारण हुई, जो विश्व में सर्वाधिक है। 13.6 लाख लोगों की मृत्यु का कारण जल प्रदूषण है। 6.1 लाख लोगों की मृत्यु घरेलू वायु प्रदूषण के कारण हुई। हालांकि 2019 में हुई मौतें 2015 की तुलना में कम है। कुछ राहत की बात हो सकती है लेकिन इस पर संतोष नहीं किया जा सकता है। अध्ययन के अनुसार घरों में बायोमास का जलना भारत में वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों का प्रमुख कारण है।
कोयला और पराली जलाने से भी वायु प्रदूषण बढ़ा है। प्रदूषित हवाओं के चलते होने वाली बीमारियों से मरने वालों की संख्या 55 प्रतिशत है। वायु प्रदूषण सबसे बड़ी समस्या है लेकिन इस पर अंकुश लगाने की दिशा में जितना कार्य होना चाहिए था, वह नहीं हुआ। इसके लिए कोई जवाब देही भी नहीं तय हो पायी है। इसके लिए सरकारी तंत्र के साथ ही आम जनता भी समान रूप से जिम्मेदार है। यदि प्रदूषण की यही स्थिति बनी रही तो भविष्य में यह कितना भयावह रूप ले लेगा, इसकी कल्पना नहीं की जा सकती है। सरकार और जनता को प्रदूषण के मुद्दे पर संवेदनशील बनना होगा।