पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि स्वर्ग और नर्क-धर्म शास्त्रों में नरक से आये हुए और स्वर्ग से आये हुए व्यक्तियों के लक्षण लिखे हुए हैं। अत्यन्त कोपा कटुका च वाणी, जिस व्यक्ति में बहुत ज्यादा क्रोध हो, जिसकी वाणी बहुत कड़वी हो, जो व्यक्ति सदा दुर्व्यसनों में फंसा रहता हो, जो नीचों का संग करता हो और जो ईश्वर से विमुख रहता हो, वो व्यक्ति नर्क से आया है। जो तुम्हारे साथ क्लब जाने को तो तैयार हो और सत्संग में आने के लिये तैयार न हो, समझ लेना ये पापी है। जो बोतल तो मजे से पीता हो और चरणामृत पीने में नाक भौं सिकोड़ता हो समझ लेना, ये नर्क से आया हुआ, महापापी है, पापवंत कर सहज सुभाऊ। भजन मोर तेहिंभाव न काऊ।। उल्लू कहता है, चाहे जहां रख लो, चाहे जो करा लो, बस एक काम नहीं करूंगा। क्या? प्रकाश के सामने नहीं जाऊंगा। रोशनी के सामने नहीं जाऊंगा। कुछ लोग उल्लू छाप होते हैं। वो कहते हैं और चाहे जो करा लो, हमको सत्संग में नहीं ले जाओ। पूजा करने की बात मत करो हमसे, तुम कर लो, तुम्हें जो चाहिए। हम परेशान नहीं करते तुम्हें लेकिन हम से मत कहो। ये पापी हैं नर्क से आए हुए हैं। स्वर्ग से आने वालों के लक्षण क्या हैं? जिनकी वाणी मीठी हो, जिनको क्रोध न आता हो या कम आता हो। जो शांत और गंभीर रहते हैं, देवार्चनं पितृतर्पण च। जो देवताओं का पूजन करते हों। जो पितरों का तर्पण करते हों, जो माता-पिता के प्रति श्रद्धावान हो। वो ईश्वर के भजन और दान में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हों। शास्त्र कहते हैं- समझ लेना ये व्यक्ति स्वर्ग से आ रहा है। पहले पुण्य किया तो सुख भोगने चला गया स्वर्ग और अब आया है तो फिर पूंजी इकट्ठी कर रहा है, बैकुंठ जाने के लिये और पापी पाप करके गया नर्क, डंडा खाकर आया है भूखा और फिर पाप में लग गया। पापवंत कर सहज सुभाऊ। भजन मोर तेहि भाव न काऊ।। उल्लू प्रकाश से देश करता है, द्वेष रखता है। वो चाहता है कि हे भगवान् दुनियां में और चाहे जो हो जाये पर सूर्य कभी न निकलें। तो पापी यही चाहते हैं कि- मोहल्ले में और चाहे कुछ भी होता रहे पर सत्संग नहीं होना चाहिए। कथा नहीं होनी चाहिये। मंदिर न जाना पड़े। क्योंकि-जौ पै दुष्ट हृदय सोई होई। मोरे सनमुख आव कि सोई।। ईश्वर है प्रकाश, और पाप है अंधकार। आप ऐसा करो कि डिब्बे में, पेटी में, पीपे में अंधकार को भर लो और कहो श्रीमान जी हम आपको सूरज के पास ले चल रहे हैं। वह कहेगा ना बाबा ना मुझे वहां मत ले जाओ क्योंकि वहां जाने पर मेरी सत्ता ही नहीं रह जायेगी। जैसे अंधकार प्रकाश से डरता है, इसी तरह पापी व्यक्ति परमात्मा से डरता है, भगवान् को कौन पाता है? निर्मल मन जन सो मोहि पावा। मोहि कपट छल छिद्र न भावा।। निर्मल मन,- हम लोग ठाकुर के चरणों में पुष्प चढ़ाते हैं। पुष्प का दूसरा नाम है सुमन। आप सुंदर-सुंदर गुलाब के और मोगरे के, मोतियों की मालाएं और पुष्प लाकर ठाकुर को चढ़ा रहे हो। सुमन चढ़ा रहे हो। ठाकुर कहते हैं कि ये तो बहुत हमने स्वीकार कर लिये। बहुतों ने चढ़ा दिये। ये बाहर के सुमन लाने के बजाये, आप अंदर का सु-मन चढ़ा दो। मन में भक्ति रूपी सुगंध भरकर सद्गुण रूपी सुगंधी भरकर अपने मन को भगवान् के चरणों में चढ़ा दो। आपका जीवन निहाल हो जायेगा। कृत-कृत्य हो जायेगा। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी,दानघाटी,बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।
ईश्वर के भजन और दान में बढ़ चढ़कर लेना चाहिए हिस्सा: दिव्य मोरारी बापू
।।श्री दिव्य चातुर्मास।।
1-श्री शिवमहापुराण कथा
(15 जुलाई से 12 अगस्त,
श्रावण पूर्णिमा पर्यन्त।)
2- श्री विष्णुमहापुराण कथा
(13 अगस्त से 21 अगस्त तक।)
3- श्री गणेशमहापुराण कथा
22 अगस्त से 31 अगस्त तक। (श्री गणेश चतुर्थी पर्यन्त)
4- श्रीमद् देवीभागवत महापुराण कथा।
(1 सितंबर से 9 सितंबर तक।)
5- श्रीमद् भागवत महापुराण कथा।
(10 सितंबर से 25 सितंबर तक।)
6- श्री राम कथा
26 सितंबर से 5 अक्टूबर तक (शारदीय नवरात्रि)
7-श्रीमद्भगवद्गीता कथा
( 6 अक्टूबर से 15 अक्टूबर तक)