नई दिल्ली। लोग जरूरत पड़ने पर बैंक से कर्ज लेते हैं और कर्ज के आधार पर प्राप्त ब्याज से बैंक चलते हैं। ऐसे में कर्ज वसूली का तरीका अमानवीय न होकर मानवीय होना चाहिए। अनेक बैंक कर्ज वसूली के लिए निजी एजेंसियों का सहारा लेती हैं जो ऋण उपभोक्ताओं का उत्पीड़न कर जबरदस्ती वूसली करते हैं और यदि ऋण की अदायगी कुछ बच जाती है या किसी कारणों से उपभोक्ता ऋण राशि नहीं जमा कर पाता है तो ऋण में लिया हुआ सामान वह जबरन अपने साथ ले जाते हैं।
यह ऋण उपभोक्ताओं का अधिकार हनन है। ऐसे में भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर शक्तिकांत दास का जबरन कर्ज वसूली के तरीकों पर अंकुश लगाने का निर्णय राहतकारी कदम है। इससे उन लोगों को बड़ी राहत मिलेगी जो अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ऋण लेते हैं या ऋण लिया हुआ है।
श्री दास ने वसूली के तरीकों पर नाराजगी जाहिर करते हुए कहा है कि वसूली एजेण्ट वक्त–बेवक्त फोन कर ऋण उपभोक्ताओं से आपत्तिजनक तरीके से बात करते हैं और वसूली के लिए कठोर तरीकों का इस्तेमाल करते हैं, जो स्वीकार्य नहीं है। इस तरह की ज्यादातर घटनाएं उन संस्थानों से जुड़ी होती हैं, जो पंजीकृत नहीं हैं लेकिन पंजीकृत संस्थान भी इसमें पीछे नहीं हैं जिनके कारण अनेक ऋण उपभोक्ताओं को आत्महत्या करनी पड़ती है।
ऐसी घटनाएं मानवीय संवेदनाओं को तार–तार करती है। इस पर अंकुश लगाए जाने की कार्रवाई मानवता की दृष्टि से उचित और जरूरी है। इस सम्बन्ध में आरबीआई को कड़े प्रावधानों का अनुपालन कराया जाना सुनिश्चित करना चाहिए जिससे आम लोगों का बैंक पर विश्वास बढ़े और वह ऋण की अदायगी के लिए प्रेरित हों। ऋण उपभोक्ताओं के साथ मानवीय व्यवहार किया जाना चाहिए। बैंक भी इस बात को संज्ञान में रखे कि ऋणदाता से वसूली मानवीय व्यवहारों के तहत ही किया जाना चाहिए।