नई दिल्ली। अब देश बदल रहा है, इसकी बड़ी झलक इस बार राष्ट्रपति के चुनाव में देखने को मिल रहा है। भारत जाति-पाति का बंधन तोड़कर वनवासी, गिरिवासी, वंचित समाज के लोगों को भी उचित स्थान देकर समरसता के साथ सफलतापूर्वक आगे बढ़ रहा है। इस बार 4033 विधायक एवं 776 लोकसभा एवं राज्यसभा के कुल 4809 सांसद मतदान करेंगे। यह देखना दिलचस्प रहेगा कि 21 जुलाई को राष्ट्रपति भवन रायसीना हिल्स का रास्ता द्रौपदी मुर्मू या फिर यशवंत सिन्हा दोनों में से किसके लिए खुलता है।
बता दें कि सभी विधायकों के मतों के मूल्य को कुल सांसदों की संख्या से भाग देकर एक संसद सदस्य के वोट का मूल्य तय होता है। अतः विधायकों के कुल मतों का मूल्य जो कि 5,43,231 है। 776 सासंदों में एक सासंद का मूल्य 700 बनता है। सांसदों और विधायकों के वोट का मूल्य अलग- अलग होता है। एक सासंद के मत का मूल्य 700 है तो 5,43,200 मत तो सांसदों के गिने जायेंगे और विधायकों के 543231 मत गिने जायेंगे। विपक्ष के रूप में संप्रग (यूपीए) के पास लगभग 2,59,800 मत हैं।
इसमें कांग्रेस के पास सर्वाधिक लगभग 1,45,000 मत हैं। गैर-संप्रग विपक्षी दलो के पास 2,92,800 मत हैं। संयुक्त रूप से विपक्षी दलों के पास लगभग 5,52,000 से अधिक मत हैं। जबकि भाजपा की अगुआई वाले एनडीए के पास 5,26, 420 मत हैं, जो कि लगभग 48 प्रतिशत है। ऐसे में राजग को किसी दलका समर्थन लेना पड़ेगा।
जिसमें वाईएसआर कांग्रेस और बीजू जनता दल हैं। इन दोनों दलों ने वर्ष 2017 में भी राजग के प्रत्याशी रामनाथ कोविन्द को समर्थन दिया था। यद्यपि एनडीए को राष्ट्रपति चुनाव में जीत के लिए अपने मतों के अतिरिक्त लगभग 13000 मतों की आवश्यकता है, जबकि बीजद के पास 31 हजार से अधिक मत हैं, जबकि वाईएसआर कांग्रेस के पास 43000 से ज्यादा मत हैं। स्वाभाविक है कि इनमें से किसी एक का भी समर्थन राजग के लिए पर्याप्त होगा।
इस सारे गणित को बारीकी से समझते हुए नरेंद्र मोदी ने उड़ीसा की आदिवासी महिला द्रौपदी मुर्मू को मैदान में उतारा, ताकि विपक्ष की सारी योजना धरी की धरी रह जाय। द्रौपदी मुर्मू उड़ीसा के रायरंगपुर से विधायक रहने के साथ झारखंड की गर्वनर और उड़ीसा की परिवहन मंत्री भी रह चुकी हैं। वह सुशिक्षित और जमीन से जुड़ी हुई अनुभवी नेता हैं।
दूसरी ओर शरद पवार तथा फारूख अब्दुल्ला के मना करने के बाद विपक्ष ने वाजपेयी सरकार में विदेश एवं वित्तमंत्री रह चुके यशवंत सिन्हा को इसलिए मैदान में उतारा है कि वह मोदी के घोर विरोधी है। मोदी का विरोधी होना ही विपक्ष राष्ट्रपति चुनाव के लिए बहुत बड़ी अर्हता मान रहा है। विपक्ष अपने बनाए भ्रमजाल से कब बाहर निकलेगा, यह राजनीतिक पंडितों को भी ज्ञात नहीं है।