पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्यि संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि अयोध्याकांड में दो चरित्र का बड़ा विस्तार है। अयोध्याकांड के पूर्वार्ध में श्रीरामचरित और उत्तरार्ध में श्री भरतचरित है। भगवान की दो तरह की लीलाओं का शास्त्रों में वर्णन किया गया है। ऐश्वर्यसंपन्न लीला और माधुर्यसम्पन्न लीला। ऐश्वर्य संपन्न लीला उसे कहते हैं, जो कोई मनुष्य नहीं कर सकता, केवल भगवान् ही कर सकते हैं और माधुर्यसंपन्न लीला उसे कहते हैं, जो हम आप भी कर सकते हैं। बालकांड में भगवान् की दोनों तरह की लीलाओं का दर्शन होता है। सुबह उठ करके माता-पिता को प्रणाम करते हैं इसका अनुकरण हम लोग भी कर सकते हैं और करना चाहिये। भगवान् माता-पिता की आज्ञा का पालन करते हैं, आपस में चारों भाई बहुत प्रेम रखते हैं ये हम लोग भी कर सकते हैं और करना चाहिये। लेकिन भगवान् एक वाण में ताड़का जैसी भयानक राक्षसी को मार देते हैं, एक वाण में मरीच को सौ योजन दूर फेंक देते हैं, एक वाण में सुबाहु का उद्धार कर देते हैं, चरण धूल से अहिल्या जी का उद्धार करते हैं, जिस धनुष को दुनियां भर के राजा महाराजा हिला भी नहीं पाये, भरी सभा में उस धनुष का भंग करते हैं और भगवान परशुराम भी धनुष प्रभु श्रीराम को दे करके तप करने चले जाते हैं। ये सब ऐश्वर्य प्रधान लीला है। ये कोई नहीं कर सकता। श्री रामचरितमानस के अयोध्याकाण्ड में केवल माधुर्य संपन्न लीलाओं का गान किया गया है। भगवान् श्रीराम का माता-पिता के प्रति प्रेम, बंधु प्रेम का अद्भुत दर्शन कराया गया है। प्रभु श्रीराम कहते हैं वही पुत्र भाग्यशाली है जिसे माता-पिता के वचन में प्रेम है, जो माता-पिता का आज्ञाकारी है। इसके बाद भगवान् के चरित्र में बंधु प्रेम का महानतम् दर्शन होता है। भगवान् श्रीराम कहते हैं अगर मैं राजा बनता हूं तो लोग मुझे चक्रवर्ती सम्राट राम कहेंगे, लेकिन अगर मेरा भाई भरत राजा बन जाता है तो लोग मुझे चक्रवर्ती सम्राट भरत के बड़े भाई राम कहेंगे। भरत के राजा बनने से मुझे दो गुना बड़प्पन मिलेगा। इस लीला में भगवान् ने माता-पिता भाई-बंधु परिवार एवं अयोध्या वासियों के प्रति अद्भुत प्रेम का दर्शन कराते हैं और बन में प्रभु निषादराज, नाव वाले केवट और वनवासी कोल भील लोगों में भी अद्भुत प्रेम का दर्शन कराते हैं। उसके बाद आगे भरत चरित्र आता है, जिसमें बड़े भाई का कितना सम्मान होना चाहिए इसका अद्भुत दर्शन कराया गया है।