नई दिल्ली। संसद और विधानसभाओं में जिस तरह आरोप- प्रत्यारोप में असंसदीय भाषा का प्रयोग किया जाता है, वह सदन की गरिमा को जहां धूल-धूसरित करता है वहीं उत्तेजना और गतिरोध का कारण बनता है। संसदीय शब्दों की मर्यादा जरूरी है। ऐसे में सदन की मर्यादा को बनाए रखने के लिए असंसदीय भाषा के इस्तेमाल पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगाया जाना संसदीय अनुशासन के लिए जरूरी है।
हालांकि लोकसभा सचिवालय ने ऐसे शब्दों और वाक्यों का संकलन तैयार किया है जिसे असंसदीय अभिव्यक्ति की श्रेणी में रखा गया है, जिसके चलते लोकसभा और राज्यसभा की कार्यवाही के दौरान सांसद अब कुछ शब्दों का इस्तेमाल नहीं कर सकेंगे। यह संकलन ऐसे समय आया है जब 18 जुलाई से संसद का मानसून सत्र शुरू होने वाला है। इस सत्र में चर्चा के दौरान या किसी अन्य तरीके से एनर्कस्ट, शकुनी, डिक्टोरियल, तानाशाह, तानाशाही, विनाश पुरुष, खालिस्तानी और खून से खेती जैसे शब्द का प्रयोग किया गया तो उन्हें रिकार्ड से हटा दिया जाएगा।
लोकसभा सचिवालय ने दोहरा चरित्र, निकम्मा, नौटंकी, ढिंढोरा पीटना और बहरी सरकार को भी असंसदीय शब्दों की सूची में शामिल किया। सांसद अब जुमलाजीवी और जयचन्द जैसे शब्दों का भी इस्तेमाल नहीं कर सकेंगे। यह अच्छा प्रयास है, इसका अनुपालन सांसदों और विधायकों को करना चाहिए जिससे जनता के हित में ज्यादा से ज्यादा कार्य किये जा सके और सदन का बहुमूल्य समय भी नष्ट न हो।
हालांकि शब्दों को कार्यवाही से हटाने का अन्तिम अधिकार राज्यसभा के सभापति और लोकसभा के स्पीकर को ही होगा, लेकिन सांसदों और विधायकों को ऐसा आचरण करना चाहिए जो भावी पीढ़ी के लिए मिसाल का काम करे। स्वस्थ लोकतंत्र के लिए सदन का शत-प्रतिशत सद्प्रयोग किया जाना चाहिए। सदन में जनता का हित सर्वोपरि होना चाहिए, इसलिए शब्दों की मर्यादा बनाए रखने का गुरुतर दायित्व सत्ता और विपक्ष दोनों के निर्वाचित जन-प्रतिनिधियों पर है। आशा है संसद के आगामी सत्र में सांसद शाब्दिक आचरण पर विशेष ध्यान रखेंगे और इससे देश में अच्छा सन्देश भी जाएगा।