पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि भगवती सती भगवान् शंकर को छोड़कर किसी भी दूसरे का चिंतन नहीं करतीं। यह भगवान् शंकर की अर्धांगिनी है। जब कुछ बड़ी हुईं, तब इनके मन में तप करने की इच्छा जागृत हुई। ब्रह्मा जी ने नामकरण किया और बताया कि यह भगवान शंकर की अनादिकाल से अर्धांगिनी हैं। शिव और शिवा, शिवा मायने शक्ति और इन्हें सती भी कहते हैं। इनका एक नाम उमा भी है। कहते हैं कि उमा जपने से ओम् जपने का फल मिल जाता है। मा के आगे जो आ है, उसे यदि आप उ से पहले रख दो, तब व्याकरण में अ और उ मिलकर ओ हो जाता है। आ और उ मिलकर जब ओ हो जाएगा, पीछे रह म गया, इस प्रकार ओम हो गया। सन्यासी को ओम्-ओम् जपने से जो फल मिलेगा, आप महामाया भगवती दुर्गा का नाम उमा-उमा-उमा जपते रहिए, आपको भी ओम् जपने का फल मिल जाएगा।
आपकी कुण्डलिनी शक्ति जागृत हो जाएगी। उ एक प्रकार की बंसी है जैसे मछली को पकड़कर खींचने के लिए कांटा होता है, इसी प्रकार प्रत्येक व्यक्ति के मूलाधार में कुण्डलिनी शक्ति है, उस शक्ति को ऊपर की ओर खींचने के लिए उ शब्द है और मा मायने पार्वती, मां मायने महामाया आदिशक्ति जो कुंडलिनी है, वह उ से ऊपर की ओर खींचा करती है। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।