अध्यात्म। धार्मिक ग्रंथों में भगवान शिव के बारे में उल्लेख मिलता है कि तीनों लोकों की अपार सुन्दरी और शीलवती गौरी को अर्धांगिनी बनाने वाले शिव प्रेतों और भूत-पिशाचों से घिरे रहते हैं। उनका शरीर भस्म से लिपटा रहता है, गले में सर्पों का हार शोभायमान रहता है, कण्ठ में विष है, जटाओं में जगत तारिणी गंगा मैया हैं और माथे में प्रलयंकर ज्वाला है।
बैल (नंदी) को भगवान शिव का वाहन माना गया है और ऐसी मान्यता है कि स्वयं अमंगल रूप होनेपर भी भगवान शिव अपने भक्तों को मंगल, श्री और सुख-समृद्धि प्रदान करते हैं। जो विकार रहित है, वह शिव है। जो अमंगल का नाश करते हैं, वह ही सुखमय, मंगलमय शिव हैं। जो सारे जगत को अपने अंदर लीन कर लेते हैं, वे ही करूणा सागर भगवान शिव हैं।
जो नित्य, सत्य, जगत आधार, विकार रहित, साक्षी स्वरूप हैं, वह ही शिव हैं। हरिद्वार, गौमुख, गंगोत्री, काशी विश्वनाथ, बैद्यनाथ, नीलकंठ, देवघर इत्यादि विभिन्न हिन्दू तीर्थ स्थानों से गंगाजल भर कर शिव भक्त अपने स्थानीय शिव मंदिरों में इस पवित्र जल से भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं। पिछले वर्ष कोरोना महामारी के कारण कांवड़ यात्रा स्थगित थी लेकिन इस बार कांवड़ियों में एक अलग ही उत्साह देखा गया।
भारत में धार्मिक मान्यता के अनुसार सावन में गंगाजल से भगवान शिव का अभिषेक करना बहुत पुण्यकारी माना जाता है। भारत में शायद ही ऐसा कोई गांव मिले, जहां भगवान शिव का कोई मंदिर अथवा शिवलिंग स्थापित न हो। यदि कहीं शिव मंदिर न भी हो तो वहां किसी वृक्ष के नीचे अथवा किसी चबूतरे पर शिवलिंग तो अवश्य स्थापित मिल जाएगा।
शिव के मस्तक पर अर्द्धचंद्र शोभायमान है, जिसके संबंध में कहा जाता है कि समुद्र मंथनके समय समुद्र से विष और अमृत के कलश उत्पन्न हुए थे। मान्यता है कि श्रावण मास में तीर्थस्थलों के गंगाजल से जलाभिषेक के साथ भगवान शिव की विधि-विधान से पूजा-अर्चना करने और व्रत रखने से वह शीघ्र प्रसन्न होते हैं और उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है। दाम्पत्य जीवन में प्रेम और सुख शांति बनाए रखने के लिए भी यह व्रत लाभकारी माना गया है। सावन में व्रत रखने से क्रोध, ईर्ष्या, अभिमान और लोभ से मुक्ति मिलती है।