आध्यात्म। शास्त्रों में वर्णन है कि कलियुग के अंतिम दौर में भगवान विष्णु अपने दसवें अवतार के रूप में कल्कि भगवान का अवतार लेंगे। उनका यह अवतार कलियुग और सतयुग के संधि काल में होगा। भगवान कल्कि उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले के संभल नामक स्थान पर विष्णुयशा नाम के एक ब्राह्मण परिवार में जन्म लेंगे।
कल्कि सफेद घोड़े पर सवार होकर पापियों का नाश कर पुनः धर्म की रक्षा करेंगे। इस घटना का जिक्र श्रीमद्भागवत महापुराण के 12वें स्कंद के 24वें श्लोक में है, जिसके अनुसार गुरु, सूर्य और चंद्रमा जब एक साथ पुष्य नक्षत्र में प्रवेश करेंगे तो भगवान कल्कि का जन्म होगा। इनके अवतार लेते ही सतयुग का आरंभ होगा।
भगवान कृष्ण के प्रस्थान से कलियुग की शुरुआत हुई थी। नंद वंश के राज से कलियुग में वृद्धि हुई, वहीं कल्कि अवतार से कलियुग का अंत होगा। कलियुग की अवधि 4,32,000 वर्ष बताई गई है। वर्तमान में कलियुग के 5119 साल पूरे हो चुके हैं। कल्कि देवताओं के आठ सर्वोच्च गुणों का प्रतीक है और उनका मुख्य उद्देश्य एक विश्वासहीन दुनिया की मुक्ति है।
कलियुग को अधेरे के युग के रूप में माना जाता है, जहां लोगों द्वारा धर्म और विश्वास को नजरअंदाज कर दिया जाता है और वे भौतिकवादी महत्वाकांक्षा और लालच में अपने उद्देश्य को भूल जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि विभिन्न भ्रष्ट राजाओं की हत्या के बाद, भगवान कल्कि मनुष्यों के दिलों में भक्ति का भाव जगाएंगे। लोग धार्मिकता के मार्ग और शुद्धता के युग का पालन करना शुरू कर देंगे और विश्वास फिर से वापस आएगा।