पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि कर्माबाई सुबह उठती थी और खिचड़ी बनाकर भगवान को भोग लगा देती थी। उसके बाद अपना काम पूरा करके नहाती थी। वह भगवान कृष्ण को अपना पुत्र मानती थी। बिना स्नान किये सुबह उठकर खिचड़ी बनाकर भोग लगा देती थी। ऐसे काफी समय से चल रहा था। एक बार एक संत उसके पास पहुंच गए और जब उन्होंने देखा तो बोले- आप यह क्या करती हो? बिना नहाए धोए खिचड़ी बनाकर भगवान को भोग लगाती हो, वह बोली- स्वामी जी! यह तो मेरा पुत्र है। मां शुद्ध हो या अशुद्ध हो अपने पुत्र को दूध पिलायेगी ही। वह बोली- स्वामी जी! यह लाला बड़ा सुकुमार है। सुबह उठते ही माखन-रोटी खाता था। अब मेरे पास माखन-रोटी की व्यवस्था नहीं है। थोड़े से चावल हैं उसी की खिचड़ी बना देती हूं। अब मैं काम करके नहाने धोने के बाद लाला को भोग लगाऊंगी, तब तक यह भूखा नहीं रह जाएगा? संत ने कहा नहीं-नहीं बिना स्नान के भोग नहीं लगाना, पाप लगता है। बेचारी मान गई।उसका काम ऐसा था कि ग्यारह बजे तक उसका काम ही न समाप्त होता। फिर नहा-धोकर खिचड़ी बनाकर भोग लगाती। तब भगवान ने एक दिन कहा तुम नहाने धोने और काम में लगी हुई हो और मुझे भूख लगी है। कर्मा ने कहा- संत कहते हैं कि बिना नहाए प्रसाद नहीं बनाना। भगवान् ने कहा- मां! यह विधि दूसरों के लिए होती है, मां के लिए नहीं। तुम बिना नहाए मुझे प्रसाद बनाकर खिला दिया करो। तू मेरी मां है।
मां किसी भी समय कुछ भी दे, अशुद्ध नहीं हुआ करता। विधि तब तक जरूरी है जब तक प्रेमा-भक्ति का जागरण नहीं हुआ। जब प्रेमाभक्ति का जागरण हो जाए, वहां विधि कमजोर पड़ जाती है। भगवान् में प्रीति को जगाने के लिए विधि की आवश्यकता है। प्रीति जाग जाने के बाद विधि कमजोर पड़ जाती है। वहां विधि का ज्यादा महत्व नहीं रखती। अपने इष्ट के प्रति जब आपका पूर्ण समर्पण हो जाए, तब विधि उतनी आवश्यक नहीं रहती। प्रेमाभक्ति में भक्त और भगवान दो नहीं रहते, मिलकर एक हो जाते हैं। पानी में यदि चीनी घोल दी जाए, वह किसी तरह अलग हो सकती है। लेकिन यदि दूध में चीनी घोल दी जाए, वह अलग नहीं हो सकती। पानी में घोलने के बाद, उस चीनी मिश्रित जल को कड़ाही में उबलने के लिए रख दो, नीचे चीनी बच जाएगी, लेकिन चीनी को दूध में घोलने के बाद चीनी अलग करने का कोई वैज्ञानिक ढंग नहीं है। भक्ति की व्याख्या ध्यान से सुनो। यूं एक और एक दो होता है। लेकिन भक्ति राज्य में एक और एक मिलकर एक ही होता है, दो नहीं होते। भक्ति के राज्य का गणित सांसारिक गणित से अलग होता है। भक्ति में दो-दो नहीं रहते। दो मिलकर एक हो जाते हैं। फिर वे ऐसे एक होते हैं कि उन्हें कोई अलग नहीं कर सकता। भक्ति-भाव पर मुग्ध होने वाले- भगवान् भगवान् केवल आपका भाव देखते हैं और आपके भाव पर ही मुग्ध हो जाते हैं। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।