नई दिल्ली। हमारे देश में भ्रष्टाचार की जड़ें बहुत गहरी हैं, इसका अन्दाजा इसी से लगाया जा सकता है कि कार्रवाई की सिफारिश के बावजूद भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कार्रवाई को लटका कर रखा जाता है। इससे भ्रष्ट अधिकारियों और कर्मचारियों का गलत करने का हौसला तो बढ़ता ही है साथ ही केन्द्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) की सार्थकता पर भी सवाल खड़ा करता है।
एक ओर सरकार भ्रष्टाचार मुक्त भारत का मिशन चला रही है, वहीं दूसरी ओर सरकारी विभागों के अधिकारी और कर्मचारी सरकार के मिशन में पलीता लगाने का काम कर रहे हैं। ऐसे में केन्द्रीय सतर्कता आयोग की सरकारी विभागों के रवैये पर नाराजगी उचित और सरकार के लिए सन्देश है।
सीवीसी की वार्षिक रिपोर्ट में कहा गया है कि आय से अधिक सम्पत्ति के मामले में फंसे अधिकारियों के विरुद्ध कार्रवाई करने की जगह मामले को बंद कर दिया गया, जबकि 55 ऐसे मामले हैं, जिसमें सिफारिश के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं की गई जो सरकारी मंशा पर बड़ा सवाल खड़ा करता है, क्योंकि इससे स्पष्ट सन्देश जाएगा कि भ्रष्टाचारियों को बचाया जा रहा है।
इसके पीछे बचाने वालों का स्वार्थ क्या है यह जनता के सामने आना चाहिए। बहुत से तो ऐसे मामले हैं जिनमें अभी तक मंजूरी नहीं दी गयी है। ऐसे में सरकार का दायित्व बनता है कि सीवीसी ने जो सिफारिशें की हैं उसको अमलीजामा पहनाने के लिए यथाशीघ्र ठोस कदम उठाए। भ्रष्टाचारियों के खिलाफ सख्त सन्देश देने की जरूरत है। सरकारी विभागों में जड़ जमा चुके भ्रष्टाचार के दीमक को समाप्त करने के लिए ऐसे तत्वों के खिलाफ सख्त कार्रवाई आवश्यक ही नहीं अनिवार्य है।