राजस्थान/पुष्कर। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि अविज्ञातं विजानी ताम् ज्ञानं अविजानिताम्। जो कहता है, मैंने ईश्वर को तो जान लिया, वेद भगवान् कहते हैं कि उसने कुछ नहीं जाना और जो कहता है कि अनंत का अंत तो कोई जान ही नहीं सकता, समझ लो कि ईश्वर के रास्ते पर जा रहा है और उसे किनारा मिल जायेगा। जानकारी का अभिमान भी ईश्वर से दूर कर देता है।
भगवान् को प्राप्त करने के तीन मार्ग हैं ज्ञान, भक्ति और कर्म। ज्ञान, उपासना और कर्म ये भगवान् को पाने की तीन रास्ते हैं, लेकिन उच्च कोटि के भक्तों ने कहा मैं चौथे घाट से जाऊंगा। जिसे कहते हैं भगवत शरणागति का घाट। क्योंकि ज्ञानी बनकर ब्रह्माकार वृत्ति मैं नहीं बना सकता,कर्म का निषेधात्मक रूप मेरे जीवन में उतर नहीं पाया और मेरे जीवन में भक्ति का भी प्रवेश नहीं हुआ, मैं भक्त होने का दवा कैसे कर सकता हूं? उच्च कोटि के भक्तों ने अपने को भक्त नहीं माना है।
भक्ति उसे कहते हैं जहां अपने को भक्त न माने। भक्ति महारानी का आसन दीनता है। अपने जीवन में दीनता के भावों को संचित करना है। दीनता भक्ति महारानी का आसन है और दीनता निरंतर ईश्वर की तरह दृष्टि रखने से जीवन में आती है। संसार की तरफ अधिक दृष्टि रखने से हीनता का भाव आना संभव है और हीनता का भाव खतरनाक है। राधा रानी बड़ी सुंदर थी। जो विशिष्ट व्यक्ति होते हैं, उनका माता-पिता से कोई समानता नहीं होती। जब महाराज द्रुपद यज्ञ कर रहे थे, तब द्रौपदी और धृष्टद्युम्न प्रगट हुये।
द्रुपद के कोई संतान नहीं थी। हवन करते हुए ज्योति से, लपटों से द्रौपदी प्रगट हुई । इसी तरह भगवती राधा रानी, कीर्ति सुता जी का प्रसंग ऐसे है कि प्रातः काल बृजभान जी महाराज बाहर गये, तब एक तालाब में एक कमल के पुष्प पर लेटी हुई राधारानी को बालिका के रूप में प्राप्त किया, लाकर पत्नी की गोंद में डाल दिया, और माता-पिता बहुत प्रसन्न हुए।राधारानी तो दिव्य शक्ति है। इसी तरह भगवान् राम पैदा नहीं हुए। जो लोग कहते हैं राम पैदा हुये, कृष्ण पैदा हुए उन्होनें मूल ग्रंथ पढ़ा ही नहीं।
भये प्रगट कृपाला परम दयाला यशोमति के हितकारी। वह तो प्रकट हुए हैं। भगवान् कृष्ण भी प्रगट हुए। यह आदि दैवी शक्तियां होती हैं, कभी-कभी संसार में प्रगट होती हैं। कुछ लोग इस बात को नहीं मानते। एक नास्तिक महोदय कहने लगे कि कुंड से कन्या कैसे पैदा हो सकती है। हमारे एक संत ने कहा कि साहब यदि बिना माता-पिता के संतान नहीं हो सकती, तब पहले आप यह बताओ कि सृष्टि के आरंभ में जब माता-पिता थे ही नहीं, तब संताने कैसे पैदा हुई? गेहूं से गेहूं पैदा होता है,
यह सामान्य पक्ष है लेकिन सृष्टि के आरंभ में गेहूं था ही नहीं तब गेहूं का दाना कहां से आया? बिना आम के गुठली नहीं हो सकती और बिना गुठली के आम नहीं हो सकता। सृष्टि के प्रारंभ में बिना गेहूं के दाने के गेहूं बना सकता है, बिना गुठली के आम का वृक्ष बना सकता है, बिना अंडे की मुर्गी बना सकता है। वह परमात्मा क्या बिना माता-पिता की नहीं आ सकता? अर्थात अवश्य आ सकता है, भगवान् के लिए कुछ भी असंभव नहीं है। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश)।