पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि श्रीमद्भागवतमहापुराण का माहात्म्य-जब तक भगवान् की कृपा न हो तब तक श्रीमद्भागवत की कथा सुलभ नहीं होती। श्रीमद्भागवत महापुराण भगवान का ही वाङमय स्वरूप है। भागवत् को सुनने से मतलब है भगवान को सुनो! सुनो तो श्रीकृष्ण को, गाओ तो श्रीकृष्ण को,ध्याओ तो श्रीकृष्ण को। श्रवण, कीर्तन और स्मरण तीनों भगवान का हो! कलिकाल में यही एक साधन है। श्रीमद्भागवत ज्ञानयज्ञ के लिए हम सभी प्रयत्नशील थे। लेकिन व्यक्ति के पुरुषार्थ के साथ-साथ जब तक भगवान् की कृपा, प्रभु कृपा मिल नहीं जाती, तब तक सत्संग प्राप्त नहीं होता। मनुष्य यत्न भी करे, इच्छा भी करे, लेकिन इच्छा और यत्न के साथ-साथ भगवत अनुग्रह बहुत जरूरी है। इच्छा सत्संग की भक्त के मन में जागृत हो जाय और इस इच्छा की पूर्ति के लिए भक्त संनिष्ठ यत्न करें, प्रयत्न करें, पुरुषार्थ करें, किंतु पुरुषार्थ के पात्र में जब तक भगवत कृपा का अमृत नहीं उतरता, तब तक श्रीमद्भागवत का सत्संग सुलभ नहीं होता। उन तीनों को जोड़- इच्छा, यत्न और अनुग्रह, तीनों जब मिल जाते हैं, तब सत्संग की प्राप्ति होती है।मानव जीवन में तीन चीजें दुर्लभ मानी गई है। भगवान् आद्यगुरु शंकराचार्य ने विवेक चूड़ामणि में कहां है कि तीन चीजें ऐसी हैं संसार में जो मनुष्य अपने पुरुषार्थ से प्राप्त नहीं कर सकता। इसके लिए प्रभु कृपा चाहिए। देवताओं का अनुग्रह चाहिए। वह तीन चीजें हैं- मनुष्यत्वं, मुमुक्षुत्वं और महापुरुष संश्रयः। तीन चीजें दुर्लभ है। एक तो मनुष्यत्व, मानवजन्म, मानव शरीर। बड़े भाग्य से मानव शरीर मिलता है। दूसरी जो दुर्लभ बस्तु है मुमुक्षुत्व। मुक्ति की प्यास भीतर पैदा होती ही नहीं। संसार के बंधन में ही हम जिंदगी पूरी कर देते हैं। मुमुक्षा पैदा होना परमात्मा की दूसरी बहुत बड़ी कृपा है और तीसरी चीज जो दुर्लभ है ‘ महापुरुषसंश्रयः’। मुक्ति की इच्छा जागृत हो गई हो तो मुक्ति का मार्ग दिखावे, मुक्ति की ओर हमें ले चले, ऐसा कोई महापुरुष, ऐसा कोई सद्गुरु, मिलना दुर्लभ है। ऐसे संतों का, ऐसे सद्गुरु का, संग ही सत्संग है। अर्थात् यह सत्संग दुर्लभ है। यही बात भागवत में वेदव्यास जी ने कही है- मानव देह दुर्लभ है और वह भी कैसा है? क्षणभंगुर है। जीवन क्षणभंगुर है। पानी में उठे बुदबुदे की भांति। बुदबुदे की आयु कितनी? क्षणभंगुर है जीवन। कब समाप्त हो जाए कोई भरोसा नहीं। बहुत अनिश्चितता में जी रहे हैं हम। और क्षणभंगुर जीवन में भी भागवतकार कहते हैं। बैकुंठ भगवान का नाम है, और भगवान् को प्रिय यानी संत, भक्त, उनका दर्शन, उनका मिलना, उनसे सत्संग ये दुर्लभ है। तीन चीजें जो दुर्लभ कही गई हैं। वे भगवत कृपा से ही प्राप्त होती हैं और भागवत के अनुष्ठान में हम आपको वे तीनों सहज प्राप्त दिखाई पड़ती है। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।