पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा धर्म शास्त्रों में अनेक प्रकार के यज्ञों जैसे- द्रव्य, स्वाध्याय, योग, ज्ञान, जप आदि में से जप यज्ञ को श्रेष्ठ यज्ञ की संज्ञा दी गई है। किसी भी मंत्र को बार-बार दोहराना जप कहलाता है। जप चार प्रकार के होते हैं। (क) परा,(ख) पश्यन्ती,(ग) मध्यमा एवं(घ) बैखरी। परा नाभि में; पश्यन्ती हृदय में; मध्यमा कंठ में और वैखरी का होठों में स्थान होता है। पारा का साक्षात्कार योगियों को होता है। शास्त्रों में उपांशु जप (मध्यमा) अथवा अजपा जप को उत्तम माना है। सामान्य जप की अपेक्षा इसका फल 10 गुना अधिक है। माचिस की तीली में आग है पर घर्षण से प्रकट होती है, अथवा दो लकड़ियों के घर्षण से भी अग्नि प्रकट की जा सकती है। उसी प्रकार जिह्वा के बार-बार तालु या कंठ में घर्षण होने से आध्यात्मिक ऊर्जा जागृत होती है जो भीतर की ज्योति को प्रकाशित करती है, आनंद देती है। माचिस की डिबिया या तीली में प्रकाश भरा है जो घर्षण से प्राप्त होता है। दही में से मक्खन भी घर्षण से ही निकलता है। मथने से न दिखने वाला मक्खन ऊपर आ जाता है। इसी प्रकार जिह्वा से बार-बार नाम जप छिपे हुए चेतन को जागृत करता है। कलिकाल में भगवान् के नाम का जप या गुरुमंत्र का जप महत्वपूर्ण माना गया है। जपात् सिद्धिः जपात् सिद्धिः जपात् सिद्धिः पुनः पुनः। श्रीरामचरितमानस में पूज्य श्री गोस्वामी जी ने भी लिखा है। कलियुग केवल नाम अधारा। सुमिर सुमिर नर उतरहिं पारा। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।