श्रद्धा और विश्वास साधक के हैँ दो नेत्र: दिव्य मोरारी बापू

पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, श्रद्धा का अर्थ सद्ग्रंथ और गुरु के वचनों पर प्रत्यक्ष विश्वास करना है। श्रद्धा और विश्वास साधक के दो नेत्र हैं जिनसे वह सत्य का साक्षात्कार करता है। ‘श्रद्धावान् लभते ज्ञानम् ‘ अर्थात् श्रद्धा से ही ज्ञान प्राप्त किया जाता है। यदि शास्त्र और गुरु के वचनों पर शंका है तो ज्ञान प्राप्त न हो पायेगा। श्रद्धावान् ही ज्ञान पा सकते हैं। अपने धर्म, माता-पिता, महापुरुषों और धर्मग्रंथों में अटूट आस्था इसी कोटि में आती है।नेवला आधा सोने का- महाभारत में एक निर्धन ब्राह्मण की अतिथि सेवा और दान की अद्भुत घटना है। एक ब्राह्मण परिवार कई दिनों से भूखा था। उसे आधा शेर सत्तू प्राप्त हुआ। ब्राह्मण ने वह सत्तू चार भागों में बांट कर पत्नी, पुत्र, पुत्री को दिया और चौथा भाग स्वयं लेकर खाने को तैयार हुआ तो एक भूखा भिक्षुक आया और भोजन की याचना की, ब्राह्मण ने अपना भाग उसे खिला दिया, ‘ परंतु वह बोला, ‘ अभी मेरी तृप्ति नहीं हुई ‘इस तरह वह कहता गया और पत्नी, पुत्र, पुत्री ने कर्मशः अपना भाग भी उसे खिला दिया और जल भी पिला दिया। तभी एक नेवला जल पीने वहां आया, जैसे वह उस थोड़े से विखरे जल में घुसा उसका आधा शरीर सोने का हो गया और वह बड़ा प्रसन्न था। शेष आधे शरीर को भी सोने का बनाने के चक्कर में घूम रहा था कि युधिष्ठिर जी के राजसूय यज्ञ में पहुंचा, जहां अतिथि हाथ धो रहे थे, उसी जल में लोटपोट होने लगा, परंतु चेष्टा व्यर्थ ही सिद्ध हुई। आधा भाग (शेष शरीर) स्वर्णमय न हो सका। भगवान् श्रीकृष्ण ने पांडवों को यह दृश्य दिखाया। वे उनका अहंकार मिटाना चाहते थे। नेवले ने मानव स्वर में कहा राजन! आपके इस यज्ञ में आधा सेर सत्तू के बराबर भी शक्ति और पावनता नहीं है जो उस ब्राह्मण के अतिथि यज्ञ में थी।’ उसने सारी कथा सुनाई और पांडवों ने सिर नीचा कर लिया। इससे पूर्व वे यज्ञ की विशालता और सफलता पर गर्व कर रहे थे कि ऐसा यज्ञ कभी नहीं हुआ,जो हमने किया है। भगवान मुस्कुरा रहे थे। अतिथि सेवा वैदिक काल से भारत की सभ्यता की छाती रही है। दुर्भाग्य से आधुनिक युग में पश्चिम वाले की देखादेखी यह परंपरा हम स्वयं तोड़ते जा रहे हैं। पहले सोचते थे- मेहमान आया, भगवान आया और अब मेहमान आया तो मानो तूफान आया। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रमसे साधू संतों की शुभ मंगल। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन-जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला अजमेर (राजस्थान)।

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