सावधान होकर करनी चाहिए ईश्वर की आराधना: दिव्य मोरारी बापू

पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, पश्यन्ति न पश्यन्नपि- श्री शुकदेव जी महराज राजा परीक्षित से कहते हैं कि- परीक्षित आश्चर्य है कि व्यक्ति देखता हुआ भी गड्ढे में गिर रहा है, आश्चर्य यह है कि वह सुनता हुआ भी बहरा बना हुआ है, जानता हुआ भी अनजान बन गया है, इससे बड़ा दुःख और क्या होगा? जो सो रहा है उसे जगाया जा सकता है किंतु जो जागते हुए भी आंखें बंद किये हो, उसे कौन जगायेगा। हर व्यक्ति यह जानता है कि यहां से जाना है और जाने के बाद हमारे द्वारा किया गया कर्म, हमारे द्वारा किया हुआ भजन ही साथ जाने वाला है। भगवान श्रीकृष्ण मोरध्वज की प्रशंसा करते हैं, ताम्रध्वज की प्रशंसा आंखों में जल भरकर करते हैं। अर्जुन पूछते हैं, आखिर आप मोरध्वज की ताम्रध्वज की इतनी प्रशंसा क्यों करते हो? उन्होंने कहा-अर्जुन! उन्होंने जीवन के सत्य को पहचान लिया है। जो व्यक्ति जीवन में वास्तविक सत्य को पहचान ले, वह धन्यवाद का पात्र है, उसकी जितनी प्रशंसा की जाये थोड़ी है। कर्ण मरने लगा तो भगवान् श्रीकृष्ण रो पड़े, भले ही उन्होंने इशारे से अर्जुन के द्वारा कर्ण का उद्धार करवाया। लेकिन जब कर्ण मरने लगा तो भगवान रो पड़े और उन्होंने कर्ण से पूछा कि तुम्हारी अंतिम इच्छा क्या है? कर्ण ने कहा प्रभु मुझे वहां जलाइये जहां आज तक कोई मुर्दा न जला हो। जहां आज तक कोई लाश जमीन में न दफनाई गई हो। सारी दुनियां में भगवान् ने ढूंढा कोई ऐसी जगह न मिली। गंगोत्री के ऊपर हिमालय के बर्फीली स्थान में गये, आकाशवाणी हो गई कि यहां भीष्म को सौ बार जलाया गया है, हजार बार द्रोणाचार्य जलाए गये हैं,दस हजार बार शल्य जलाये गये हैं और कर्ण कितनी बार जलाया गया है, इसकी संख्या ही नहीं मालूम।तब भगवान् श्री कृष्ण ने अपने हाथ पर चिता बनाकर, कर्ण का अंतिम संस्कार अपनी हथेली पर किया। कर्ण को अपनी हथेली पर जलाया। भगवान् यह बताना चाहते थे पांडवों को कि व्यक्ति लाशों के ऊपर ही बैठा हुआ है और संसार में पृथ्वी ने न मालूम कितने लोगों को खाया हुआ है। यहां मैं-मेरा करने वाले करोड़ों पैदा हुये और अंत में काल के गाल में चल गये। एक तृण भी लेकर नहीं गये, सूई भी लेकर नहीं गये। परीक्षित जी को श्री शुकदेव जी ने राजाओं की एक लंबी लिस्ट सुनाया और कहा कि परीक्षित आज केवल उनके नाम सुने जा रहे हैं। जो बड़े प्रतापी थे, इसलिए बहुत सावधान होकर के ईश्वर की आराधना उपासना करनी चाहिए। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)

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