स्वास्थ्य। बदलती जीवनशैली का हमारे स्वास्थ्य पर बड़ा असर पड़ता है। अनहेल्दी खानपान की वजह से कैंसर जैसी घातक बीमारियों ने भी तेजी से पैर पसारा है। कोलन कैंसर के पिछले कुछ समय में तेजी से मामले बढ़े हैं। सामान्यतौर पर कैंसर का यह प्रकार हमारी लाइफस्टाइल से जुड़ा है। कोलन कैंसर को आंतों का कैंसर भी कहा जाता है।
कैंसर के इस प्रकार में आंत का कैंसर और मलाशय का कैंसर एक साथ हो सकता है, इसलिए इसे कोलोरेक्टल कैंसर कहा जाता है। सामान्यतौर पर इस कैंसर की शुरुआत बड़ी आंत से होती है और ज्यादातर कोलन कैंसर की शुरुआत बड़ी आंत में छोटी कोशिकाओं के थक्कों जमने से शुरू होती है।
बड़ी आंत से शुरू होता है कैंसर:-
कोलन हमारे शरीर की बड़ी आंत होती है और मलाशय वह हिस्सा होता है जो कोलन को एनस यानी गुदा से कनेक्ट करता है। कोलन और मलाशय मिलकर बड़ी आंत का निर्माण करते हैं। यह दोनों ही हमारे पाचन क्रिया का एक अहम हिस्सा होते हैं। कोलन और मलाशय की दीवार कई परतों की बनी होती है और ज्यादातर कोलन या फिर कोलोरेक्टल कैंसर की शुरुआत इन दीवार की अंदरूनी परतों से शुरू होता है।
अंदर की परतों में होने लगती है वृद्धि:-
कैंसर की शुरुआत में अंदरूनी परतों की कोशिकाओं में बढ़ोतरी होने लगती है और इस वृद्धि को पॉलीप्स कहा जाता है। ज्यादातर कोलोरेक्टल कैंसर की शुरुआत छोटे पॉलीप्स के रूप में होती है और ये पॉलिप्स एक समूह में होते हैं। यह कैंसर पहले बड़ी आंत की अंदरूनी दीवार में होता है फिर यह ऊपरी परत को प्रभावित करता है और इसके बाद यह धीरे-धीरे दूसरे अंगों में फैलने लगता है।
कोलन कैंसर के बारे में कुछ तथ्य:-
– कोलन कैंसर पूरी दुनिया भर में तीसरा सबसे आम कैंसर है।
-यह कैंसर प्रत्येक वर्ष 18 लाख व्यक्तियों में होता है।
– हर साल इससे 862000 लोगों की मौत हो जाती है।
– कोलोरेक्टल कैंसर होने का जोखिम 20 में से एक को होता है।
कोलोरेक्टल कैंसर के लक्षण:-
– मल त्याग की आदतों में बदलाव आना।
– लगातार दस्त या कब्जियत महसूस करना।
– लगातार कमजोरी या थकान महसूस करना।
– भूख न लगना।
– तेजी से वजन कम होना।
– हीमोग्लोबिन में कमी आ जाना।
– पेट में दर्द या बेचैनी का बने रहना।
– मल में लाल या काले रंग का खून आना।
– बार बार वॉमिटिंग होना।
कोलन कैंसर को बढ़ाने वाले कारक:-
– उम्र और लंबाई के अनुसार अधिक मोटापा होना।
– धूम्रपान, तंबाकू का सेवन करना।
– शराब का नियमित सेवन करना।
– पेट के अल्सर या फिर पेट की बीमारी का पारिवारिक इतिहास होना।
– ऑटोइम्यून एट्रोफिक गैस्ट्रिटिस की समस्या।
– कैंसर का पारिवारिक इतिहास होना।
– पेट में लगातार इंफेक्शन का बने रहना भी।
– गैस्ट्रोओसोफेगल रिफ्लक्स डिजीज की समस्या होना।
कोलोरेक्टल कैंसर से बचाव के उपाय:-
-लगातार पेट में अपच की समस्या पर स्क्रीनिंग कराएं।
– कार्बोहाइड्रेट से भरपूर संतुलित आहार लें।
– एस्पिरिन लेना।
– डेली रूटीन में हेल्दी डाइट लें.।
– धूम्रपान या फिर शराब का सेवन को तुरंत बंद करें।
– कैल्शियम और विटामिन डी का सेवन करें।