पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, महारास एवं श्रीकृष्ण-रुक्मणी विवाह-रास प्रारंभ हुआ। देवता भी बाजे बजा रहे थे। ऊपर से पुष्पवृष्टि कर रहे थे। जय-जय कार हो रही थी। एक विलक्षण रस की वर्षा हो रही थी। गोपांगनाओं के पैरों के नूपुर, हाथों के कंगन और कमर की करधनी, इनकी रुनझुन आवाज एक दिव्य संगीत उत्पन्न कर रही थीं। गोपांगनाओं के नृत्य की कला, श्याम सुंदर के नृत्य की कला विलक्षण है। अगर पैर के नूपुर का एक ही घुंघरु बजना चाहिये तो एक ही घुंघरू बजेगा, बाकी नहीं बज सकते।पाँच घुंगरू बजने चाहिये तो पाँच ही बजेंगे बाकी नहीं बज सकते। यह कला जीव में नहीं हो सकती। उसमें भिन्न-भिन्न गोपांगनाओं का हाथ पकड़कर प्रभु ने नृत्य किया, जैसे छोटे बच्चे खेलते हैं, खेल का आनंद लेते हैं, वैसे वहां रस वर्षण हो रहा था, भागवत में लिखा है कि उस समय चांद वहीं का वहीं रुक गया, चांद भी आगे नहीं बढ़ सका। शिशुमार चक्र की भी गति रुक गई। जैसे प्रलय में सब जीव करोड़ों-करोड़ों वर्षों के लिये नारायण के उदर में सो जाते हैं, वैसे ही माया ने सारे प्रकृति मंडल को सुला दिया। क्योंकि रास घड़ी दो घड़ी या आठ-दस घंटे का तो नहीं था। लाखों लाख गोपियां हैं, सैकड़ों मंडल गोपियों के थे, अनंत गोपियां हैं और महारास में आता है कि लाखों लाख
श्रीकृष्ण खड़े हैं। पहले हुआ है रास और बाद में हुआ महारास। रास जब होता है तब बीच में राधा-कृष्ण का जोड़ा होता है और चारों तरफ गोपांगनाएँ होती हैं और महारास में हर गोपी का हाथ श्रीकृष्ण के हाथ में है। यदि करोड़ गोपियां हैं तो करोड़ कृष्ण हैं। इसका आध्यात्मिक अर्थ बहुत सुंदर है जब जीव प्रारंभ में उपासना करता है तो इंद्रियां अनेक होती हैं और भगवान् एक होते हैं लेकिन जब उपासना चरम सीमा पर पहुंच जाती है तो चित्त की जितनी वृतियां होती हैं, उतना भगवान् उनके साथ जुड़ा हुआ नजर आने लगता है। चित्त की वृत्ति गोपांगना है। वेदांती की चित्तवृत्ति ब्रह्म को छोड़कर कहीं विचरण नहीं करती क्योंकि वेदांती का यह मानना है कि चित्त में जो चिंतन की शक्ति है वह भी चेतना है और चेतना ही ब्रह्म है। जैसे वेदांती की चिंतन की शक्ति सदा चेतन से जुड़ी रहती है, वह अलग होकर कार्य नहीं करता। इसी तरह भक्त के मन का भाव जब बढ़ता है, फिर उसकी हर क्रिया, हर वृत्ति, मन का हर संकल्प मोहन से जुड़ा रहता है। आपके चित्त की जो वृत्तियां हैं वे गोपांगनाएँ हैं और चित्त में करोड़ों वृतियां हैं, करोड़ों इच्छाएं हैं। इसी तरह लाखों-करोड़ों गोपियां है और प्रत्येक गोपांगना को यह अनुभव होता है कि श्रीकृष्ण का हाथ हमारे हाथ में हैॅ, गोपांगना को अनुभव होगा कि श्रीकृष्ण का हाथ हमारे हाथ में है। गोपांगना के दाएं भी कृष्ण और वायें भी कृष्ण, इसका मतलब यह हुआ कि आपकी जो भी इच्छा हो, उस इच्छा के ओर-छोर में दोनों ओर श्रीकृष्ण नजर आ रहे हों, जहां से इच्छा आरंभ हो वहां भी कृष्ण हैं और जहां से इच्छा जाकर टिकती है वहां भी श्रीकृष्ण है। दोनों और से श्रीकृष्ण, जब आप की वृत्ति को पकड़ लेंगे , बीच में वृत्ति आ जायेगी फिर आपकी क्रिया ही भगवान् की उपासना बन जायेगी। आपका जो दैनिक कृत्य हैं वह भी भगवान् की आराधना बन जायेगा, ईश्वर से पृथक होकर आप रह ही नहीं पाओगे। सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)