नई दिल्ली। गंगा की निर्मलता और अविरलता सुनिश्चित करने के लिए अस्तित्व में आए नमामि गंगे की परियोजनाएं लगभग पूरी हो गईं हैं। कार्यक्रम की धीमी रफ्तार की आलोचनाओं को नकारते हुए केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने दावा करते हुए कहा कि पिछले एक वर्ष में सबसे अधिक काम हुआ है और नमामि गंगे की मुख्यधारा से जुड़ी परियोजनाएं लगभग पूरी हो गई हैं। शेखावत ने बताया कि ‘गंगा में प्रदूषण के निस्तारण से संबंधित मुख्यधारा की अधिकांश परियोजनाएं पूरी हो गई हैं और अब बेसिन आधारित दृष्टिकोण को अपनाकर काम किया जा रहा है।’
जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने बताया कि पीएम नरेन्द्र मोदी के आदेशानुसार अब श्रेणी-1, श्रेणी-2 और श्रेणी-3 की सहायक नदियों पर जरूरत के मुताबिक प्रदूषण निस्तारण एवं जलमल शोधन संबंधी आधारभूत ढांचे के विकास पर काम किया जा रहा है। इस नमामि गंगे कार्यक्रम के अंतरगत परियोजनाओं के पूरी होने की धीमी रफ्तार के बारे में जल शक्ति मंत्री ने कहा कि 1985 से 2014 तक करीब 30 वर्षों में चार हजार करोड़ रुपये खर्च करके जितनी जलमल शोधन क्षमता सृजित की गई, उससे कहीं अधिक क्षमता नमामि गंगे परियोजना के तहत 2014 से 2022 तक आठ वर्ष के दौरान विकसित की गई।
428 परियोजनाओं में 244 पूरी
केंद्रीय मंत्री ने कहा, ‘गंगा की निर्मलता का कार्य वास्तव में वर्ष 2017 से शुरू हुआ। यह एक व्यापक कार्य है, क्योंकि गंगा 2,600 किलोमीटर में प्रवाहित होती है और इसके तटों पर कई शहर और करीब चार हजार गांव बसे हुए हैं।’ राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के आंकड़ों के अनुसार, 31 मार्च 2023 तक नमामि गंगे कार्यक्रम के तहत कुल 428 परियोजनाएं मंजूर की गईं, जिनकी लागत कुल 36,512 करोड़ रुपये है। इनमें से 244 परियोजनाएं पूरी हो गई हैं, 130 में कार्य प्रगति पर है और 37 परियोजनाएं निविदा के स्तर पर हैं।
मंजूर परियोजनाओं में 58 प्रतिशत पूरी
नमामि गंगे कार्यक्रम के तहत कुल मंजूर परियोजनाओं में से अब तक 58 प्रतिशत पूरी हुई हैं। वहीं, नमामि गंगे कार्यक्रम के तहत जलमल शोधन संबंधी आधारभूत ढांचे से जुड़ी कुल 186 परियोजनाओं को स्वीकृति दी गई, जिनमें से 105 पूरी हो गई हैं, 44 में कार्य प्रगति पर है और 28 परियोजनाएं निविदा के स्तर पर हैं। शेखावत ने दावा किया कि यह सरकारी प्रयासों का ही नतीजा है कि आज गंगा दुनिया की 10 सबसे स्वच्छ नदियों में से एक बन गई है। उन्होंने कहा कि यह सिर्फ हमारा दावा नहीं है, बल्कि कुंभ के आयोजन को लेकर देश-दुनिया से मिली प्रतिक्रिया और गंगा में जलीय जीवों की संख्या में वृद्धि इसे प्रमाणित करती है।