मां महालक्ष्मी का स्मरण करने से जीवन में रहती है हर तरह की समृद्धि: दिव्य मोरारी बापू

पुष्कर/राजस्थान। परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा, श्रीमद्देवीभागवत महापुराण में बुद्धि बढ़ाने वाला एक मंत्र है, बहुत बढ़िया मंत्र है, और यह पहला ही मंत्र है- ऊँ सर्वचैतन्यरूपां तामाद्यां देवीं च धीमहि ।बुद्धिं या नः प्रचोदयात् ।। जो समग्र चेतनाओं की केंद्र-बिंदु हैं, जो आदि विद्या है, हम उनका ध्यान करते हैं, वह हमारी बुद्धि को निर्मल बना दें और परमात्मा की ओर प्रेरित कर दें। जब बार-बार आप इस मंत्र को जपेंगे, तब मंत्र का देवता कभी तो आप की ओर ध्यान देगा। किसी गली में रामलाल नाम का व्यक्ति रह रहा है। ढूंढने वाला शक्ल नहीं पहचानता, लेकिन नाम जानता है। वह गली में आवाज लगाता जा रहा है, अरे भैया रामलाल ! रामलाल जी ! नाम सुनते ही रामलाल उठेंगे, झांक कर देखेंगे, अरे क्या बात है भाई? रामलाल को ढूंढ रहा हूं। वह कहेगा, मैं ही रामलाल हूं। देखो सिर्फ नाम के आधार पर रामलाल ने अपना परिचय स्वंय दे दिया। इसी प्रकार।हम लोग भी भगवान को,माँ भगवती को नहीं जानते, भगवान का नाम जानते हैं, सदा नाम जपते रहेंगे, तब कभी तो आकर वह पूछेंगे कि क्या बात है ? क्यों मेरा नाम ले रहे हो। साधक का अपने इष्ट से मिलन हो जायेगा और उसका जीवन धन्य हो जायेगा।

‘आद्यां विद्यां च धीमहि बुद्धिं यो नः प्रचोदयात् ।’ यह पुराणों का गायत्री मंत्र है। श्रीमद्देवीभागवत महापुराण के आधार पर इस मंत्र का जो जप करता है। सात्विक जीवन बिताता है और सात्विक भोजन करता है, मां के नवार्ण मंत्र का जप करता है, परांबा का चिंतन करता है, उसको बुद्धि मिलेगी, शक्ति मिलेगी, उसके कोई शत्रु नहीं होगा और लक्ष्मी ही प्राप्त होगी। महालक्ष्मी, महाकाली और महासरस्वती- ये तीन देवियां हैं। मनुष्य के दो तरह के शत्रु होते हैं। एक बाहर के शत्रु, कुछ लोग आपके हर कार्य का विरोध करते हैं और एक भीतर के शत्रु, भीतर के शत्रुओं के कारण ही बाहर शत्रु बनते रहते हैं। अगर भीतर के शत्रु- काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद और मत्सर समाप्त हो जायें, तो बाहर हमारा कोई शत्रु नहीं होगा। जब तक भीतर के शत्रु जीवित हैं तब तक बाहर शत्रु बनते बिगड़ते रहेंगे। मां काली भक्त के भीतर के शत्रुओं को स्मरण करने मात्र से समाप्त कर देती है। जिससे जीवन निर्मल हो जाता है।

मां महालक्ष्मी का स्मरण करने से जीवन में हर तरह की समृद्धि रहती है और महासरस्वती बुद्धि की अधिष्ठात्री देवी हैं, वह आपकी बुद्धि बिगड़ने नहीं देंगी। बुद्धि का स्टीयरिंग मां के हाथ में पकड़ा दें, वह ठीक रास्ते पर ले जायेंगी। जैसे स्टीयरिंग अच्छे ड्राइवर के हाथ में हो, तब गाड़ी ठीक लक्ष्य पर पहुंच जाती है। जहां आप चाहते हैं, वहीं जाती है, स्टीयरिंग हाथ में न होने से आपकी गाड़ी कहीं की कहीं जा सकती है। इसीलिए अपनी बुद्धि की स्टीयरिंग मां के हाथ में थमा दें।अर्जुन ने अपने घोड़ों की लगाम श्रीकृष्ण के हाथ में थमा दी, इसीलिए उन्होंने कौरवों की विशाल सेना पर विजय प्राप्त की और उनका जीवन सफल हो गया। जैसे अर्जुन ने अपने घोड़ों की लगाम श्रीकृष्ण के हाथ में दे दी, इसी प्रकार आप अपनी बुद्धि की लगाम भगवान के हाथ में दे दें, मां के हाथ में दे दें और प्रार्थना करें- मां भगवती ! आप ही बुद्धि रूपा हो, हमें ऐसे रास्ते पर ले जाओ, कि हमारा जीवन सुखी रहे, शांत रहे और अंत में आपकी प्राप्ति हो जाये। मां की कृपा होगी जीवन धन्य होग

सभी हरि भक्तों के लिए पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धन धाम आश्रम से साधू संतों की शुभ मंगल कामना। श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कालोनी, दानघाटी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवाट्रस्ट गनाहेड़ा पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान)।

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