हितभोगी, मित भोगी, ॠत भोगी व्यक्ति ही होता है स्‍वस्‍थ

Puskar/Rajasthan: परम पूज्य संत श्री दिव्य मोरारी बापू ने कहा कि आहार शुद्धौ सत्व शुद्धिः सत्व शुद्धौ ध्रुवास्मृतिः. आहार- जीवन की सबसे पहली आवश्यकता है आहार. आत्मा  कभी भोजन नहीं करता. भोजन की आवश्यकता होती है शरीर को. शरीर और आत्मा का सम्मेलन है जीवन. जीवन के लिये आहार जरुरी है.प्राणी शरीर के प्रत्येक कण से आहार लेता है.एक क्षण भी व्यक्ति निराहार नहीं रह सकता. अधिकांश लोग अनियमित आहार करते हैं. वह शरीर शास्त्र की दृष्टि से दोषपूर्ण है.

जो व्यक्ति हितभोगी, मित भोगी, ॠत भोगी है, वह व्यक्ति स्वस्थ है. हित भोगी वह होता है जो स्वास्थ्य के अनुकूल भोजन करता है. कहा भी है-

दाएं स्वर भोजन करे,बाएं पीवे नीर।

बायीं करवट सोवतां, होय निरोग शरीर शरीर।।

मित भोगी वह होता है जो थोड़ा खाता है, डाक्टरों के लिये नहीं खाता. जो दो भाग भोजन, एक भाग पानी, एक भाग वायु के लिये अवकाश रखता है, वह व्यक्ति स्वस्थ होता है. ॠत भोगी वह है जो अपने श्रम का भोजन करता है. सभी हरि भक्तों को पुष्कर आश्रम एवं गोवर्धनधाम आश्रम से साधु संतों की शुभ मंगल कामना, श्री दिव्य घनश्याम धाम, श्री गोवर्धन धाम कॉलोनी, बड़ी परिक्रमा मार्ग, दानघाटी, गोवर्धन, जिला-मथुरा, (उत्तर-प्रदेश) श्री दिव्य मोरारी बापू धाम सेवा ट्रस्ट, गनाहेड़ा, पुष्कर जिला-अजमेर (राजस्थान).

 

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