छह वर्ष, 600 भर्तियां और अधर में फंसीं उम्मीदें, यूपीपीएससी भर्ती घोटाले में सीबीआई को नहीं मिला कोई सबूत

Prayagraj: उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग में हुए भर्ती घोटाले की सीबीआई जांच बंद हो सकती है। राज्य सरकार की संस्तुति पर 25 जनवरी 2018 को सीबीआई ने प्रारंभिक जांच (प्रिलिमरी इन्क्वायरी) दर्ज कर भर्तियों की जांच शुरू की थी, लेकिन इतने लंबे समय के बाद भी न तो जांच किसी ठोस नतीजे पर पहुंच सकी और न ही किसी दोषी के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई हो पाई। सीबीआइ को अप्रैल 2012 से मार्च 2017 तक कराई गई 600 से अधिक भर्ती परीक्षाओं और 40 हजार से अधिक पदों पर नियुक्तियां की जांच करनी है।

अब तक 12 हजार से अधिक अभ्यर्थियों के बयान दर्ज किए जा चुके हैं। लेकिन केवल दो प्रमुख भर्तियों पीसीएस-2015 और अपर निजी सचिव (एपीएस)-2010 में ही एफआइआर दर्ज हो सकी है। वहीं, कुछ अन्य परीक्षाओं जैसे समीक्षा अधिकारी/सहायक समीक्षा अधिकारी-2013, मेडिकल अफसर-2014 और लोअर सबआर्डिनेट-2013 में प्रारंभिक जांच दर्ज की गई है।

जांच प्रक्रिया लगातार हो रही बाधित

सीबीआइ ने आयोग को दर्जनों बार पत्र लिखे, लेकिन आयोग की ओर से जानकारी उपलब्ध कराने में हीलाहवाली की गई। एपीएस-2010 परीक्षा को लेकर 12 मई, तीन नवंबर 2022, 24 मार्च, 23 अप्रैल और 14 मई को 2025 को पत्र लिखे गए।

वहीं, पीसीएस-2015 परीक्षा के संबंध में 24 फरवरी, नौ मार्च, 29 मार्च, 20 जुलाई, 18 अक्टूबर 2023 को, 26 जुलाई और 23 सितंबर 2024 तथा 12 फरवरी और 16 अप्रैल 2025 को भी पत्र भेजा गया। पत्र के अनुसार सीबीआइ को कुछ आंशिक रिकार्ड तो जरूर प्राप्त हुए, लेकिन पूर्ण दस्तावेज अब तक नहीं मिले, जिससे जांच प्रक्रिया लगातार बाधित होती रही।

अनुमति नहीं मिलने से जांच में असमर्थ

दस्तावेजों की अनुपलब्धता और नामित लोक सेवकों के विरुद्ध भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 17ए के तहत आवश्यक अनुमति प्राप्त न होने के कारण सीबीआइ के जांच अधिकारी प्रभावी क्षेत्रीय जांच करने में असमर्थ हैं। सीबीआइ न तो उन अभ्यर्थियों से पूछताछ कर पा रही है, जिनसे संबंधित रिकार्ड अभी तक आयोग द्वारा उपलब्ध नहीं कराए गए हैं और न ही संदिग्ध लोक सेवकों से विधिवत पूछताछ या बयान दर्ज कर पाने की स्थिति में हैं। ऐसे में दोनों मामलों में जांच पूरी तरह से ठप हो चुकी है और कोई भी ठोस निष्कर्ष निकालना वर्तमान परिस्थितियों में लगभग असंभव हो गया है।

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