प्रसिद्ध दार्शनिक आचार्य प्रशांत ने बताया योग का असली स्वरूप, इतिहास में पहली बार सिनेमाघरों में कराई गई गीता सत्र की लाइव स्ट्रीमिंग

Acharya Prashant: प्रसिद्ध दार्शनिक और बेस्टसेलिंग लेखक आचार्य प्रशांत ने प्राशांतअद्वैत फाउंडेशन और पीवीआर-आईएनओएक्स की ओर से आयोजित एक ऐतिहासिक कार्यक्रम में “भगवद्गीता के प्रकाश में योग” विषय पर देश को संबोधित किया. गोवा के पीवीआर-आईएनओएक्स ओसिया से हुए इस संबोधन को पूरे भारत के 40 से अधिक सिनेमा सिनेमाघरों में एक साथ लाइव प्रसारित किया गया.

बता दें कि इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ कि सिनेमा हॉल में भगवद्गीता पर चर्चा हुई. इस बार दर्शकों ने मनोरंजन के लिए नहीं, बल्कि आत्मज्ञान के लिए टिकट खरीदे. गुड़गांव, मुंबई, पुणे, पटना, भोपाल, इंदौर समेत कई शहरों के दर्शकों ने थिएटर भरे, जहां आधुनिक भ्रांतियों को चुनौती देने वाला एक गहन गीता सत्र हुआ, जिसने भारत के योग से संबंध को फिर से जाग्रत किया.

आंतरिक जड़ता से लड़ाई है योग

“गीता का योग शारीरिक लचीलापन नहीं, आंतरिक अजेयता है,” आचार्य प्रशांत ने वैश्विक स्तर पर योग के बाजारीकरण की आलोचना की. इस दौरान उन्‍होंने कहा कि प्राचीन योगी सोशल मीडिया लाइक्स के लिए आसन नहीं कर रहे थे. वे सत्य के योद्धा थे. अर्जुन से उठकर लड़ने को कहा गया था, आसन जमाने को नहीं. योग मूलतः तुम्हारी आंतरिक जड़ता से लड़ाई है. यह तीखी सांस्कृतिक समीक्षा उस विचारक की है जिसने अपना जीवन शास्त्रों के वास्तविक अर्थ को पुनर्जीवित करने में समर्पित कर दिया है.

अविश्वसनीय गति से फैल रहा…

प्राशांतअद्वैत फाउंडेशन के संस्थापक और 160 से अधिक पुस्तकों के लेखक के रूप में आचार्य प्रशांत ने प्राचीन वेदांत को जलवायु परिवर्तन, मानसिक विघटन, पशु क्रूरता और आध्यात्मिक भ्रम जैसे समकालीन संकटों के समाधान से जोड़ा है. वो विश्व के सबसे बड़े भगवद्गीता शिक्षण कार्यक्रम का नेतृत्व कर रहे हैं, जिसमें 100,000 से अधिक प्रतिभागी जुड़े हैं, और जो अविश्वसनीय गति से फैल रहा है—जिसे पर्यवेक्षक “न्यूक्लियर चेन रिएक्शन” की तरह मानते हैं.

फाउंडेशन ने आयोजित की विश्व की सबसे बड़ी गीता-आधारित ऑनलाइन परीक्षा

बता दें कि फाउंडेशन ने हाल ही में विश्व की सबसे बड़ी गीता-आधारित ऑनलाइन परीक्षा आयोजित की, जिसमें दुनियाभर से साधकों ने भाग लिया. आचार्य प्रशांत का अध्यात्मबोध वेदांत, बौद्ध दर्शन, अस्तित्ववाद और आधुनिक मनोविज्ञान का समावेशी संगम है, जो यूसी बर्कले, बार्ड कॉलेज, आईआईटी, आईआईएम, आईआईएस, और एआईआईएमएस जैसे संस्थानों में युवाओं को प्रशिक्षित कर रहा है.

इतना ही नहीं, वो एनडीटीवी और द संडे गार्जियन में संपादकीय लेखक भी हैं. हाल ही में, आईआईटी दिल्ली एलुमनाई एसोसिएशन ने उन्हें “राष्ट्रीय विकास में असाधारण योगदान” (ओसीएनडी) सम्मान से नवाज़ा है, और “सबसे प्रभावशाली पर्यावरणविद्” पुरस्कार भी ग्रीन सोसायटी ऑफ इंडिया से प्राप्त हुआ है.

योग की लोकप्रिय छवि पर आचार्य प्रशांत ने उठाए सवाल

वहीं, इस कार्यक्रम से पहले मीडिया से बातचीत में आचार्य प्रशांत ने योग की लोकप्रिय छवि पर सवाल उठाए. “आज योग चमकदार मंचों पर मनाया जा रहा है, सेलिब्रिटीज़ द्वारा किया जा रहा है, मैट्स और आउटफिट्स के साथ बेचा जा रहा है. लेकिन क्या हम जानते हैं कि योग को जीना क्या होता है? गीता कहती है: ‘योगः कर्मसु कौशलम्’ और ‘योगः समत्वम्’. जब तक यह नहीं समझा, तब तक यह योग नहीं, सिर्फ़ करतब है.”

वेलनेस इंडस्ट्री ने हड़प लिया योग शब्दावली

इस दौरान उन्होंने चेतावनी दी कि आजकल योग शब्दावली को वेलनेस इंडस्ट्री ने हड़प लिया है. “योग कोई फैशन नहीं है. यह आंतरिक प्रतिबद्धता है—क्रांतिकारी, स्पष्ट और साहसी. गीता अर्जुन को ध्यान लगाने के लिए नहीं कहती, बल्कि युद्ध के बीच विवेकपूर्ण कर्म करने के लिए प्रेरित करती है.”

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