Basti News: उत्तर प्रदेश के बस्ती जिला से गरीब और अल्पसंख्यक समाज के हजारों बच्चों के साथ सरकारी बाबुओं के द्वारा करोड़ों रुपए की लूट का मामला सामने आया है. शैक्षिक सत्र 2021-22 में अल्पसंख्यक वर्ग के फर्जी 1832 विद्यार्थियों के नाम पर 1.46 लाख रुपये छात्रवृत्ति के गबन का मामला प्रकाश में आया है. जांच में गबन की पुष्टि होने के बाद जिला अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के सर्वेयर वक्फ निरीक्षक मोहम्मद इफि्तखार ने कोतवाली में तहरीर दी
अल्पसंख्यक वर्ग के गरीब और जरूरतमंद बच्चों के नाम पर मिलने वाली छात्रवृत्ति को चुपचाप ‘गोपनीय दान’ में बदल दिया गया. पूरे ₹1 करोड़ 46 लाख 37 हजार 604 रुपये का यह ‘शैक्षणिक दान’ सीधे कुछ सरकारी बाबुओं की जेब में चला गया.
75 आरोपियों के खिलाफ हेराफेरी करने का संगीन आरोप
इस पूरे घोटाले की भनक तब लगी जब जिला अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के सर्वेयर वक्फ निरीक्षक, मोहम्मद इफ्तिखार को कुछ गड़बड़ी का आभास हुआ. उनकी सजगता और ईमानदारी के कारण ही यह मामला पुलिस तक पहुंचा, वरना ये घोटालेबाज बाबू तो शायद इस ‘शैक्षणिक यज्ञ’ को यूं ही जारी रखते. पुलिस भी इस मामले में सक्रिय हुई. एसपी अभिनंदन ने बड़े ही जोर-शोर से बताया कि इस घोटाले में शामिल एनआईओ जीशान खान सहित गबन करने वाले 75 आरोपियों के खिलाफ सरकारी धन के हेराफेरी का संगीन केस दर्ज किया गया है.
1.46 लाख रुपये छात्रवृत्ति के गबन का आरोप
आकेंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय की ओर से अल्पसंख्यक वर्ग के छात्र-छात्राओं को छात्रवृत्ति का लाभ दिया जाता है. वित्तीय वर्ष 2021-22 एवं 2022-23 की छात्रवृत्ति में जनपद के 50 शिक्षण संस्थाओं की जांच कराई गई थी. नामित जांच अधिकारी ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की. जांच रिपोर्ट में यह तथ्य प्रकाश में आया कि वित्तीय वर्ष 2021-22 में 47 संस्थाओं के कुल 1832 छात्र-छात्राओं के आवेदन फर्जी हैं.
जबकि, उन्हें छात्रवृत्ति का भुगतान किया गया था. कुछ संस्थाओं के आईएनओ/एचओआई सही एवं कुछ फर्जी है. इस प्रकार कुल 47 संस्थाओं के 1832 छात्र-छात्राओं को भेजी गई धनराशि 1 करोड़ 46 लाख 37 हजार 604 रुपये की प्रथम दृष्टया अनियमित्ता प्रतीत होती है.
रिपोर्ट में हुआ फर्जीवाड़े का खुलासा
रिपोर्ट में साफ-साफ लिखा है कि 47 संस्थाओं के कुल 1832 छात्र-छात्राओं के आवेदन फर्जी पाए गए. यानी, न कोई वास्तविक विद्यार्थी था, न उनकी कोई पढ़ाई हो रही थी, बस उनके नाम पर ‘छात्रवृत्ति’ सीधे बैंक खातों में जा रही थी. और मज़े की बात तो ये है कि इन ‘भूतिया छात्रों’ को छात्रवृत्ति का भुगतान भी किया जा चुका था. कुछ संस्थानों के आईएनओ/एचओआई (संस्था के प्रमुख) ‘सही’ बताए जा रहे हैं, जबकि कुछ ‘फर्जी’. यानी ‘अंदर’ भी खेल चल रहा था और ‘बाहर’ भी. कुल मिलाकर, यह 1,46,37,604 रुपये की ‘प्रथम दृष्टया अनियमितता’ नहीं, बल्कि यह तो ‘पूर्ण दृष्टया महा-अनियमितता’ है! जिसने हमारे समाज के सबसे कमजोर वर्ग के बच्चों के अधिकारों को छीन लिया.
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