Indian Emergency: पचास साल पहले आज ही के दिन यानी 15 जून को स्वतंत्र भारत के इतिहास का सबसे काला अध्याय (आपातकाल की घोषणा) लिखा गया था. लेकिन इसकी प्रस्तावना उस वक्त लिखी गई थी जब 12 जून को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के रायबरेली से चुनाव को अमान्य घोषित कर दिया था.
बता दें कि इंदिरा गांधी के खिलाफ चुनाव याचिका समाजवादी नेता राज नारायण ने दायर की थी, जो रायबरेली से चुनाव हार गए थे. उन्होंने इंदिरा गांधी के चुनाव एजेंट यशपाल कपूर एक सरकारी कर्मचारी थे और उन्होंने अपने चुनावी कार्य के लिए सरकारी अधिकारियों का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया था.
इमरजेंसी के कारण कांग्रेस सरकार के खिलाफ बढ़ा रोष
लेखक ज्ञान प्रकाश ने अपनी पुस्तक ‘इमरजेंसी क्रोनिकल्स : इंदिरा गांधी एंड डेमोक्रेसीज टर्निंग प्वाइंट’ में भारतीय लोकतंत्र पर लगे कलंक के रूप में याद की जाने वाली घटनाओं का विस्तृत उल्लेख किया है. उन्होंने अपनी पुस्तक में बताया है कि हाईकोर्ट के फैसले में इंदिरा गांधी को चुनावी अनियमितताओं का दोषी पाया गया. इससे इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के खिलाफ सार्वजनिक असंतोष बढ़ गया, जिसका कारण, अत्यधिक महंगाई, आवश्यक वस्तुओं की कमी और जड़ अर्थव्यवस्था के कारण था.
इंदिरा गांधी से छिन लिया गया संसद से मतदान का अधिकार
दरअसल, साल 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध के प्रभाव से महंगाई, आवश्यक वस्तुओं की कमी से देश की जनता जूझ रही थी. इसी बीच गुजरात में चिमनभाई पटेल के खिलाफ नवनिर्माण आंदोलन और बिहार में जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में युवाओं का आंदोलन तेज हो गया. ऐसे में पूर्व प्रधानमंत्री ने हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील की और 24 जून, 1975 को सुप्रीम कोर्ट से शर्तों के साथ राहत प्राप्त की, जिसके तहत उन्हें प्रधानमंत्री के रूप में कामकाज जारी रखने की अनुमति दी तो मिली, लेकिन उनसे संसद में मतदान का अधिकार छिन गया.
संपूर्ण क्रांति के आह्वान पर 21 महीने का आपातकाल
वहीं, इसके अगले दिन यानी 25 जून को विपक्षी नेताओं ने दिल्ली के रामलीला मैदान में एक विशाल रैली आयोजित की, जिसमें जयप्रकाश नारायण ने ”संपूर्ण क्रांति” का आह्वान किया. इस दौरान उन्होंने पुलिस तथा सशस्त्र बलों से अपील की कि वे उन आदेशों की अवहेलना करें जो उनके विवेक के अनुसार अनुचित थे. वहीं, सुप्रीम कोर्ट के फैसले से हताश इंदिरा गांधी ने बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर रे से परामर्श करने के बाद मौजूदा राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद को आपातकाल लगाने की सिफारिश की. इस दौरान उन्होंने देश की आंतरिक सुरक्षा को खतरा होने का हवाला दिया.
जबरन नसबंदी का अभियान भी रहा कुख्यात
वही, देश में आपातकाल की घोषणा से स्वतंत्रता समेत सभी मौलिक अधिकारों, सभा के अधिकारों को निलंबित कर दिया गया. इसके अलावा, मीडिया पर पूरे तौर पर सेंसरशिप लागू की गई. न्यायपालिका की कार्यकारी कार्रवाई की समीक्षा की शक्ति को भी सीमित कर दिया गया. इतना ही नहीं, इस दौरान सभी लोकतांत्रिक परंपराओं का हनन करते हुए जयप्रकाश नारायण, लालकृष्ण आडवाणी, अटल बिहारी वाजपेयी समेत विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारी का आदेश दिया.
वहीं, संजय गांधी के कुख्यात नसबंदी अभियान के तहत जनसंख्या नियंत्रण के नाम पर गरीब और हाशिए पर रहने वाले समुदायों के लाखों पुरुषों की जबरन नसबंदी की गई. देश में अचानक लागू किया गया ये आपातकाल भी लगभग उसी तरीके से समाप्त हुआ, जब इंदिरा गांधी ने 18 जनवरी, 1977 को चुनावों और राजनीतिक कैदियों की रिहाई का आह्वान किया.
जानिए कब क्या हुआ
- जनवरी, 1966 में इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री निर्वाचित हुईं.
- 1971 में विपक्षी नेता राज नारायण ने रायबरेली में चुनाव में धांधली की शिकायत दर्ज कराई.
- 12 जून, 1975 को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इंदिरा गांधी को चुनावी धांधली का दोषी ठहराया.
- 24 जून, 1975 को सुप्रीम कोर्ट में इंदिरा गांधी की सरकार को अनुमति, संसदीय विशेषाधिकार छिने.
- 25 जून, 1975 को इंदिरा गांधी की सलाह पर तत्कालीन राष्ट्रपति ने आपातकाल की घोषणा की.
- 18 जनवरी, 1977 को इंदिरा ने नए चुनावों की घोषणा की, राजनीतिक कैदियों की रिहाई के आदेश
- 16 मार्च, 1977 को इंदिरा गांधी व उनके बेटे संजय गांधी की लोकसभा चुनाव में हार.
- 21 मार्च, 1977 को आपातकाल का आधिकारिक रूप से अंत.
इसे भी पढें:-Axiom-4 Mission: शुभांशु शुक्ला आज भरेंगे अंतरिक्ष की उड़ान, संभालेंगे गगनयान मिशन की कमान