Ganesh Chaturthi 2025: सनातन धर्म में गणेश चतुर्थी के व्रत का विशेष महत्व माना जाता है. कहते हैं जो कोई इस दिन सच्चे मन से व्रत रखता है उसके जीवन की सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं. इस दिन श्रद्धालु घर में बप्पा की प्रतिमा स्थापित करते हैं और उनकी विधिवत पूजा करते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि गणेश चतुर्थी क्यों मनाई जाती है और इस दिन कौन सी कथा पढ़ी जाती है. चलिए आपको बताते हैं गणेश चतुर्थी की पावन कथा.
गणेश चतुर्थी व्रत कथा
एक बार महादेव जी भोगावती नदी पर स्नान करने गए .उनके चले जाने के बाद पार्वती माता ने अपने तन के शुद्ध व चैतनयित मल से छोटे से बालक का एक पुतला बनाया और उसमें प्राण डाले. उसका नाम ‘गणेश’ रखा. पार्वती माता ने उस बालक से कहा कि ” तुम द्वार पर बैठ जाओ और जब तक मैं नहा रही हूं किसी को अंदर मत आने देना.”
नदी में स्नान करने के बाद जब भगवान शिव जी वहाँ पहुंचे तो गणेश जी ने उन्हें द्वार पर ही रोक लिया. शिवजी ने बहुत समझाया पर गणेश जी नहीं माने. भगवान शिव वास्तव में क्रोधित हो गए और त्रिशूल का उपयोग करके उसका सिर काट कर भीतर चले गए. बाद में जब माता पार्वती को पता चला कि क्या हुआ तो वह भी बहुत क्रोधित हुईं.
पार्वती माता बहुत क्रोधित हुईं और उन्होंने ब्रह्मांड को नष्ट करने की धमकी दी. उन्हें शांत करने के लिए, भगवान शिव ने अपने गणों को सबसे पहले जिस जीव को देखा, उसका सिर लाने के लिए भेजा. गणों ने उत्तर दिशा की ओर लेटे हुए एक हाथी को देखा. उन्होंने हाथी के सिर को लड़के के धड़ पर प्रत्यारोपित किया और उसे पुनर्जीवित कर दिया. तब शिव ने उनका नाम गणों का प्रमुख ‘गणेश’ रखा.
देवताओं ने गणेश जी को तमाम शक्तियां प्रदान की और प्रथम पूज्य बनाया. यह घटना भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को हुई थी इसलिए इस तिथि को पुण्य पर्व ‘गणेश चतुर्थी’ के रूप में मनाया जाता है.
गणेश चतुर्थी के दिन यदि आप व्रत रखते हैं और गणेश जी की कोई विशेष कथा सुनते या पढ़ते हैं तो कहा जाता है कि इससे आपके किए गए बुरे कामों से छुटकारा मिल सकता है और आपका जीवन बेहतर हो सकता है. गणेश चतुर्थी व्रत कथा व्यक्ति की मनोकामनाएं पूर्ण करने वाली और जीवन में सुख समृद्धि लाने वाली बताई गई है.
इनका प्रिय भोग मोदक है. कहते हैं कि ,मोदक के साथ ही साथ उन्हें मोतीचूर के लड्डू बेहद पसंद हैं. गणेश चतुर्थी के दिन प्रात काल स्नानादि करके गणेश जी की प्रतिमा को सिंदूर चढ़ाकर षोडशोपचार विधि से पूजा करते हैं और दक्षिणा अर्पित करके 21 लड्डुओं का भोग लगाते हैं. इनमें से पांच लड्डू गणेश जी की प्रतिमा के पास रखकर शेष ब्राह्मणों को दान में देते हैं. गणेश जी की पूजित प्रतिमा को फिर एक उत्तम मुहूर्त में नदी या तालाब में विसर्जित किया जाता है. इस दिन गणपति पूजन करने से बुद्धि व रिद्धि सिद्धि की प्राप्ति होती है और सभी विघ्न बाधाएं नष्ट हो जाती हैं.
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