Guru Purnima: गुरु पूर्णिमा, गुरु और शिष्य की परंपरा को समर्पित पर्व है, जो हर साल आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा तिथि को बहुत ही श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाता है. वैदिक पंचांग के अनुसार, इस वर्ष गुरु पूर्णिमा 10 जुलाई 2025 को मनाई जाएगी. भारत सहित नेपाल और बौद्ध देशों में भी यह दिन श्रद्धा और आभार के साथ मनाया जाता है. गुरु पूर्णिमा का महत्व केवल आध्यात्मिक ही नहीं, बल्कि सामाजिक, शैक्षणिक और सांस्कृतिक स्तर पर भी अत्यंत विशिष्ट है.
यह दिन ज्ञान, मार्गदर्शन और जीवन के अंधकार को मिटाने वाले हर उस व्यक्ति को नमन करने का दिन है जिसे हम गुरु मानते हैं. गुरु चाहे हमारे अध्यापक हों, माता-पिता हों या फिर कोई आध्यात्मिक मार्गदर्शक इस दिन हम उन्हें कृतज्ञता और सम्मान के साथ प्रणाम करते हैं.
गुरु पूर्णिमा 2025 डेट और टाइम
पंचांग के अनुसार, आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा तिथि की शुरुआत 10 जुलाई 2025 को रात 1 बजकर 37 मिनट पर होगी और इसका समापन 11 जुलाई को रात 2 बजकर 7 मिनट पर होगा. हिंदू परंपरा में पर्व उसी दिन मनाया जाता है, जब तिथि सूर्योदय के समय हो. ऐसे में गुरु पूर्णिमा 10 जुलाई 2025, गुरुवार को मनाया जाएगा.
गुरु पूर्णिमा की पौराणिक मान्यताएं
गुरु पूर्णिमा को महर्षि वेदव्यास की जयंती के रूप में भी मनाया जाता है. माना जाता है कि आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को वेदव्यास जी का जन्म हुआ था. उन्होंने महाभारत, श्रीमद्भागवत, 18 पुराणों और ब्रह्म सूत्र जैसे कई महान ग्रंथों की रचना की, और चारों वेदों का विभाजन कर उन्हें व्यवस्थित किया था जिससे सनातन धर्म को एक मजबूत वैदिक आधार मिला.
बौद्ध धर्म के अनुयायियों के अनुसार, भगवान गौतम बुद्ध ने बोधगया में ज्ञान प्राप्त करने के बाद पहली बार सारनाथ में अपने पांच शिष्यों को उपदेश इसी दिन दिया था. यही कारण है कि बौद्ध समुदाय में भी यह दिन विशेष पूजा और ध्यान के साथ मनाया जाता है.
गुरु पूर्णिमा 2025 शुभ मुहूर्त
- ब्रह्म मुहूर्त: सुबह 4:10 बजे से 4:50 बजे तक
- अभिजीत मुहूर्त: दोपहर 11:59 बजे से 12:54 बजे तक
- विजय मुहूर्त: दोपहर 12:45 बजे से 3:40 बजे तक
- गोधूलि मुहूर्त: शाम 7:21 बजे से 7:41 बजे तक
- इन मुहूर्तों में गुरु पूजन, दान, ध्यान और आशीर्वाद प्राप्त करना अत्यंत शुभ माना जाता है.
गुरु पूर्णिमा की पूजा विधि
गुरु पूर्णिमा के दिन सूर्योदय से पहले स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण किए जाते हैं. फिर घर या मंदिर में गुरु की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित की जाती है और उन्हें पुष्प, वस्त्र, अक्षत, धूप-दीप आदि से पूजन कर आरती की जाती है. गुरु को दक्षिणा, वस्त्र या अन्य श्रद्धा अनुसार भेंट दी जाती है.
यदि व्यक्ति के जीवन में कोई जीवित गुरु हैं, तो उन्हें जाकर साक्षात प्रणाम कर आशीर्वाद लेना अत्यंत पुण्यदायक माना जाता है. कई स्थानों पर गुरु के चरण धोकर उन्हें स्नान कराकर पूजा की परंपरा भी निभाई जाती है. इसके अलावा, वेदपाठ, भजन, कीर्तन, ध्यान, और सत्संग का भी आयोजन होता है.
गुरु पूर्णिमा का आध्यात्मिक महत्व
गुरु पूर्णिमा सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह जीवन को दिशा देने वाले हर ‘गुरु तत्व’ की आराधना का दिन है. इस दिन लोग नदियों में स्नान करते हैं, व्रत रखते हैं, अपने गुरुओं को उपहार देते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं. कई जगहों पर विशेष सत्संग, कथा और भजन संध्याएं भी आयोजित की जाती हैं. गुरु पूर्णिमा केवल एक पर्व नहीं, बल्कि यह आत्मबोध, आत्मचिंतन और आध्यात्मिक उन्नति का दिन भी है. यह दिन आत्मिक गुरु या ईश्वर के उस स्वरूप को समर्पित होता है जो जीवन को दिशा देता है. इस दिन व्रत रखने और गुरु मंत्र का जाप करने से विशेष फल मिलता है.
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