सालों से क्यों बंद हैं कुतुब मीनार के दरवाजे? आज भी याद कर कांप उठते हैं लोग, जानें 1981 की भयावह मंजर

Qutub Minar: कुतुब मीनार दिल्ली का प्रमुख ऐतिहासिक स्थल है, जहां हर साल लाखों लोग घूमने आते हैं. ऐसे में जो लोग इस जगह पर घूमनें गए होंगे वो जानते होंगे की कुतुब मीनार के दरवाजें पर्यटकों के लिए नहीं खोले जाते हैं. पहले पर्यटकों को कुतुब मीनार के अंदर जाने की अनुमति थी. लोग सीढ़ियों से ऊपर तक घूम सकते थे. लेकिन 1981 में हुए एक बड़े हादसे के बाद दरवाजे हमेशा के लिए बंद कर दिए गए.

कुतुबमीनार का निर्माण

कुतुबमीनार का निर्माण कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1192 में शुरू करवाया था और उसके उत्तराधिकारी इल्तुतमिश ने इसे पूरा किया था. करीब 73 मीटर ऊंची यह मीनार लाल और बलुआ पत्थरों से बनी है. यह विश्व की सबसे ऊंची ईंटों से बनी मीनार है. इसकी दीवारों पर कुरान की आयतें उकेरी गई हैं, जो इसकी इस्लामी स्थापत्य कला को और भी शानदार बनाती हैं. ऊपर से देखने पर इसका हर मंजिल का घेरा कम होता जाता है, जिससे यह दूर से देखने पर और भी ऊंची लगती है.

कुतुब मीनार में कितनी सीढ़ियां हैं?

आज यह यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है और हर साल लाखों पर्यटक इसे देखने आते हैं. अब सवाल है कि इसके अंदर कितनी सीढ़ियां हैं. इमारत के अंदर 379 सीढ़ियां हैं. जी हां, इतनी लंबी चढ़ाई कि ऊपर पहुंचते-पहुंचते सांस फूल जाए. कुतुब मीनार के भीतर की खामोशी, वो अंधेरा, और वो बंद दरवाजे आज भी उस हादसे की कहानी बयां करते हैं. अगर आप कभी कुतुबमीनार जाएं तो एक बार ठहरकर ऊपर देखिएगा और सोचिएगा कि कभी लोग इन सीढ़ियों पर चढ़कर दिल्ली को आसमान से देखने का सपना देखा करते थे.

4 दिसंबर 1981 का काला दिन

4 दिसंबर 1981 का दिन कुतुब मीनार के इतिहास में एक ‘ब्लैक डे’ के रूप में दर्ज हो गया. उस दिन, कुतुब मीनार के अंदर लगभग 300 से 400 पर्यटक मौजूद थे, जिनमें स्कूली बच्चों की संख्या ज्यादा थी. शाम का समय था और लोग मीनार के संकरे गलियारों और सीढ़ियों पर धीरे-धीरे ऊपर-नीचे आ-जा रहे थे. तभी अचानक बिजली गुल हो गई और पूरा मीनार घने अंधेरे में डूब गया. अंधेरा होते ही, अंदर मौजूद लोगों में घबराहट फैल गई. बच्चों ने चीखना शुरू कर दिया, जिससे अफरा-तफरी का माहौल बन गया. मीनार के अंदर की सीढ़ियां बेहद पतली और घुमावदार हैं, ऐसे में अंधेरे में रास्ता खोजने और बाहर निकलने की कोशिश में भगदड़ मच गई. दर्दनाक हादसे में कुल 45 लोगों की मौत हो गई, जिनमें ज्यादातर स्कूली बच्चे थे.

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