पर्यावरण संरक्षण में पूर्वोत्तर रेलवे का है अद्भुद योगदान

लखनऊ। जब प्रदूषण का जिक्र आता है तो हमारे सामने कुछ चित्र उभरने लगते हैं जैसे वाहनों से निकलता धुंआ या फिर ट्रेन के डीजल इंजन से निकलता हुआ। पर तेज यातायात व्यवस्था के बिना किसी भी सभ्यता का विकास संभव नहीं। ऐसे में जो यातायात के साधन देश की तरक्की के लिए उपयोग हो रहे हैं, वो पर्यावरण मित्रवत हों इसका ध्यान भी जरुरी है। इस दिशा में भारतीय रेल ने सबसे बड़ी कामयाबी हासिल की है। पूर्वोत्तर रेलवे के मुख्य जन संपर्क अधिकारी पंकज कुमार सिंह ने बताया कि पर्यावरण हित में रेल मंत्रालय ने सभी बड़ी लाइनों (ब्रॉडगेज) को विद्युतीकृत करने का निर्णय लिया। अब मिशन मोड में कार्य करते हुए भारतीय रेल दुनिया की सबसे बड़ी हरित रेल बनने की ओर अग्रसर है। उन्होंने बताया कि 2030 तक जीरो कार्बन उत्सर्जक बनाने का लक्ष्य निर्धारित है। भारतीय रेल के इस महत्वाकांक्षी कदम को सफल बनाने के लिए कभी छोटी लाइन (मीटर गेज) के नाम से प्रसिद्ध पूर्वोत्तर रेलवे का 2014-15 के पूर्व मात्र 24 किमी रेल खंड ही विद्युतीकृत हो पाया था। वहाँ वर्तमान में 2287 किमी रेल खंड को विद्युतीकृत कर लिया गया है जोकि पूर्वोत्तर रेलवे पर अवस्थित कुल बड़ी लाइन (रूट किमी) का 73 प्रतिशत है। पंकज ने बताया कि विगत दो वित्तीय वर्षों, 2019-20 एवं 2020-21, में पूर्वोत्तर रेलवे विद्युतीकरण कार्य में संपूर्ण भारतीय रेल पर द्वितीय स्थान पर रही, जिसके फलस्वरूप सभी प्रमुख रेल मार्गों पर इलेक्ट्रिक ट्रेनें आज दौड़ रही हैं। उन्‍होंने बताया कि पर्यावरण को संरक्षित रखने के लिए रेलवे हर स्तर पर प्रयास कर रहा है। इसी क्रम में एक हेड ऑन जेनरेशन (एचओजी)व्यवस्था है। इसके अंतर्गत कोचों में बिजली की सप्लाई, ओवरहेड इक्विप्मेंट से इलेक्ट्रिक लोकमोटिव के माध्यम से की जा रही है। फलस्वरूप डीजल से चलने वाले पावर कार की उपयोगिता खत्म हो गई है। पूर्वोत्तर रेलवे से कुल 34 ट्रेनों को एचओजी युक्त कर चलाया जा रहा है। गत वित्त वर्ष 2020-21 में लगभग रु 21 करोड़ के ईंधन की बचत हुई है। यहां बता दें कि रेलवे बोर्ड ने भारतीय रेल की सभी बड़ी लाइनों को विद्युतीकृत करने का लक्ष्य दिसंबर 2023 तय किया हुआ है, जिसे पूर्वोत्तर रेलवे समय से प्राप्त कर लेगा। स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत भारतीय रेल ने लगभग सभी ट्रेनों में बायो-टॉयलेट लगाए हैं। यही कारण है कि अब कोचों से गंदगी (मल-मूत्र) पटरियों पर नहीं गिरता। इस प्रयास से रेल की पटरियों पर प्रतिदिन गिरने वाले 2 लाख 74 हजार लीटर गंदगी को रोका जा सका है।

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